भारत के तीसरे प्रधानमंत्री कौन थे | भारत के प्रधानमंत्रियो की सुंची

भारत के तीसरे प्रधानमंत्री कौन थे | भारत के प्रधानमंत्रियो की सुंची –  वर्तमान में भारत के प्रधानमत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी हैं. श्री नरेन्द्र मोदी की ख्याति पुरे विश्व में हैं. उन्हें हर कोई देश और विदेश में पसंद करते थे. लेकिन आपको पता हैं की कोई ऐसा भी प्रधानमंत्री था जिनके समय में पाकिस्तान का लाहौर पर भारत का कब्ज़ा था. इस आर्टिकल में हम ऐसे ही प्रभावशाली प्रधानमंत्री और भारत के तीसरे प्रधानमंत्री के बारे में जानेगे. इस आर्टिकल में भारत के प्रधानमंत्री की सुंची भी प्राप्त करेगे.

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भारत के तीसरे प्रधानमंत्री कौन थे?

भारत के तीसरे प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री थे.

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भारत के प्रधानमंत्रियो की सुंची

भारत के स्वतंत्र होने से लेकर तक भारत के प्रधानमंत्रियो की सुंची निम्न अनुसार हैं:

सं. नाम कार्यकाल आरंभ
1 जवाहरलाल नेहरू 15 अगस्त, 1947
2 गुलजारीलाल नंदा 27 मई, 1964
3 लालबहादुर शास्त्री 9 जून, 1964
02 गुलजारीलाल नंदा 11 जनवरी, 1966
4 इन्दिरा गान्धी 24 जनवरी, 1966
5 मोरारजी देसाई 24 मार्च, 1977
6 चौधरी चरण सिंह 28 जुलाई, 1979
04 इन्दिरा गान्धी 14 जनवरी, 1980
7 राजीव गान्धी 31 अक्टूबर, 1984
8 विश्वनाथ प्रताप सिंह २ दिसम्बर, 1989
9 चंद्रशेखर 10 नवंबर, 1990
10 नरसिंह राव 21 जून, 1991
11 अटल बिहारी वाजपेयी 16 मई, 1996
12 एच डी देवगौड़ा 1 जून, 1996
13 इंद्रकुमार गुज़राल 21 अप्रेल, 1997
011 अटल बिहारी वाजपेयी 19 मार्च, 1998
011 अटल बिहारी वाजपेयी 19 अक्टूबर, 1999
14 मनमोहन सिंह 22 मई, 2004
014 मनमोहन सिंह 22 मई, 2009
15 नरेन्द्र मोदी 26 मई, 2014
015 नरेन्द्र मोदी 30 मई 2019

 

पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री की जीवनी | लाल बहादुर शास्त्री का जन्म कब हुआ था

भारत के तीसरे प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री थे. लाल बहादुर शास्त्री 9 जून 1964 से लेकर 11 जनवरी 1966 अपनी मृत्यु तक भारत के प्रधानमंत्री रहे. इन 18 महीनों में उन्होंने अद्वितीय कार्य किया है. जिसके कारण आज भी उनको याद किया जाता है. शास्त्री जी का जन्म 2 अक्टूबर 1904 में उत्तर प्रदेश के मुगलसराय में हुआ था. उनके पिताजी का नाम मुंशी शारदा प्रसाद श्रीवास्तव था. उनके पिताजी एक शिक्षक थे तथा उन्हें सब लोग ‘मुंशी जी’ कहते थे.

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शास्त्री जी जब 18 महीने के हुए थे. तभी दुर्भाग्यपूर्ण उनके पिताजी की मृत्यु हो गई. उनकी माताजी रामदुलारी अपने पति की मृत्यु के बाद पिता के घर चली आई. शास्त्री जी का बचपन भी अपने ननिहाल में ही गुजरा था. उन्होंने प्राथमिक शिक्षा ग्रहण करने के बाद हरिश्चन्द्र हाई स्कूल और काशी विद्यापीठ में अध्ययन किया. काशी विद्यापीठ में उनको शास्त्री जी की उपाधि मिली.

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उसके बाद उन्होंने अपने नाम के साथ जातिसूचक शब्द ‘श्रीवास्तव’ हमेशा के लिए हटा दिया और अपने नाम के आगे शास्त्री लगा लिया. सन 1928 में उनका विवाह मिर्जापुर निवासी गणेश प्रसाद की पुत्री ललिता से हुआ.

शास्त्री जी का राजनितिक जीवन

शास्त्री जी एक सच्चे गांधीवादी विचारधारा के व्यक्ति थे. तथा उन्होंने अपना सारा जीवन सादगी से बिताया था.  उन्होंने अपना जीवन गरीबो और असहाय की सेवा में लगा दिया था. भारत की आजादी की लड़ाई में सभी महत्वपूर्ण कार्यक्रम और आंदोलनों में शास्त्री जी की भागीदारी सक्रिय रुप से दिखती थी. और इसी कारण उनको कही बार जेल भी जाना पड़ता था. स्वतंत्र संग्राम में 1921 का असहयोग आंदोलन, 1930 का दांडी मार्च, 1942 का भारत छोड़ो आंदोलन में शास्त्री जी की भूमिका उल्लेखनीय हैं.

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द्वितीय युद्ध के समय जब इंग्लैंड की हालत बुरी तरीके से उलझ गई थी. तब नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने आजाद हिंद फौज को ‘दिल्ली चलो; का नारा दिया था. उसी समय गांधी जी ने स्थिति का फायदा उठाते हुए 8 अगस्त 1942 की रात को मुंबई से ‘भारत छोड़ो’ नारा अंग्रेजों के लिए तथा ‘करो या मरो’ का नारा देशवासियों के लिए दिया था. और खुद येरवडा पुणे में स्थित आगा खान पैलेस में सुरक्षा में चले गए थे.

तभी शास्त्री जी ने इलाहाबाद पहुंचकर 9 अगस्त 1942 को बड़ी चतुराई से गांधी जी के नारे को ‘मरो नहीं मारो’ में परिवर्तित कर दिया. और पूरे भारत में क्रांति की प्रचंड लहर चला दी थी. पूरे 11 दिन तक भूमिगत रहने के बाद 19 अगस्त 1942 को शास्त्री जी को गिरफ्तार कर दिया गया.

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प्रधानमंत्री की भूमिका में लाल बहादुर शास्त्री

आजादी के बाद सन 1964 में उनकी साफ-सुथरी छवि के कारण भारत का प्रधानमंत्री बनाया गया. प्रधानमंत्री बनने के बाद प्रथम भाषण में ही उन्होंने स्पष्ट कर दिया था कि उनकी प्रथम प्राथमिकता खाद्यान्न पदार्थों के बढ़ते मूल्य को रोकना है. और वह इस में पूर्ण रूप से सफल भी रहे थे.

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शास्त्री जी का शासन काल बहुत कठिन रहा था. क्योंकि यह वही समय था. जब पूंजीवादी देश पर हावी हो रहे थे. और दुश्मन देश भारत पर आक्रमण करने का मौका ही देख रहे थे. सन 1965 में अचानक पाकिस्तान ने शाम के 7:30 बजे भारत पर हवाई हमला कर दिया था. राष्ट्रपति ने तत्काल बैठक बुलाई. जिसमें तीनों सेनाओं के प्रमुख और प्रधान मंत्री शास्त्री जी उपस्थित रहे.

शास्त्री जी ने इस बैठक में सेनाओं के प्रमुखो को कहा कि ‘आप देश की रक्षा कीजिए और मुझे बताइए कि हमें क्या करना है’. इस समय सेना और जनता का मनोबल बढ़ाने के लिए शास्त्री जी ने ‘जय जवान जय किसान का नारा’ दिया.

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लाहौर पर भारत की विजय

पाकिस्तान का आक्रमण का सामना करते हुए भारतीय सेना पाकिस्तान के लाहौर तक पहुंच गई थी. इस अप्रत्यक्ष आक्रमण को देखते हुए अमेरिका ने लाहौर में रह रहे अपने अमरीकी नागरिकों को बचाने के लिए कुछ समय के लिए युद्धविराम की मांग की. आखिरकार रूस और अमेरिका की मिलीभगत से शास्त्री जी पर जोर डाला गया और उन्हें रूस के ताशकंद समझौता में बुलाया गया.

3 दिसंबर 2018 को शास्त्री जी ने अंतरराष्ट्रीय दबाव के कारण ताशकंद समझौते के प्रत्येक तत्वों को मंजूर कर लिया था. लेकिन उन्होंने पाकिस्तान से जीती हुई जमीन को वापस लौटाने के लिए स्पष्ट मना कर दिया था.

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उन्होंने कहा की “मेरे प्रधानमंत्री होते हुए यह जमीन वापस नहीं होगी भविष्य में अगर कोई प्रधानमंत्री यह जमीन वापस कर दें तो वह कर सकता है.”

रहस्यमय मृत्यु | लाल बहादुर शास्त्री को किसने मारा

युद्ध विराम पर हस्ताक्षर करने के कुछ घंटे बाद ही 11 जनवरी 1966 को प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री का आकस्मिक निधन हो गया. हत्या का कारण हार्ट अटैक बताया गया. शास्त्री जी के शव का पूरे राजकीय सम्मान के साथ यमुना के किनारे शांतिवन में अंतिम संस्कार किया गया. तथा उस स्थान को ‘विजय घाट’ नाम दिया गया.

शास्त्री जी की मृत्यु आज भी रहस्य का विषय है उनके परिवार और बहुत से लोगों का मानना है कि शास्त्री जी की मृत्यु हार्ट अटैक से नहीं बल्कि जहर देकर की गई थी. यह भी आरोप लगते है कि मृत्यु के बाद शास्त्री जी के शव का पोस्टमार्टम भी नहीं हुआ था. शास्त्री जी की आकस्मिक मृत्यु आज भी रहस्य ही हैं.

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निष्कर्ष

इस आर्टिकल (भारत के तीसरे प्रधानमंत्री कौन थे | भारत के प्रधानमंत्रियो की सुंची | पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री की जीवनी | लाल बहादुर शास्त्री का जन्म कब हुआ था) को लिखने का हमारा उद्देश्य आपको भारत के तीसरे प्रधानमंत्री श्री लाल बहादुर शास्त्री के जीवन के बारे में विस्तार से बताना हैं. वह सिर्फ 18 महीने भारत के प्रधानमंत्री रहे. लेकिन इस 18 महीनो में उन्होंने देश के लिए जो किया. वह अद्वितीय था. उनके आकस्मिक मृत्यु प्रत्येक भारतीय के लिए दुर्भाग्यपूर्ण हैं. इस आर्टिकल में हमने भारत के प्रधानमंत्रियो की सुंची भी डाली हैं.

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