Bhagwan Parshuram ke guru kaun the

Bhagwan Parshuram ke guru kaun the | Bhagwan Parshuram story in hindi | परशुराम के गुरु कौन थे | परशुराम जी का जीवन परिचय – परशुराम का जन्म स्थान – भारतवर्ष पर ऐसे कही ऋषि मुनि हुए. जिन्होंने समय-समय पर धरती पर दुष्टों, अधर्मियों और अहंकारियो का नाश किया. ऐसे ही ऋषि भगवान परशुराम थे. जिन्होंने अहंकारी और धृष्ट हैहय वंशी क्षत्रियो का 21 बार पृथ्वी से संहार किया. इस आर्टिकल में हम जानेगे की भगवान परशुराम के गुरु कौन थे. तथा इस आर्टिकल में हम भगवान परशुराम के बारे में भी जानकारी प्राप्त करेगे.

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परशुराम के गुरु कौन थे | Bhagwan Parshuram ke guru kaun the

भगवान परशुराम ने शिव जी से शस्त्र विधा का ज्ञान लिया था. परशुराम भगवान शिव से समय-समय पर अनेक विधाओ की शिक्षा लेते थे. अंत परशुराम के गुरु शिव थे.

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एक कहानी यह भी प्रचलित हैं की एक बार परशुराम ने शिवजी से शिक्षा लेने के पश्चात् गुरु शिव को गुरु दक्षिणा देना चाहते थे. शिवजी ने कहा की “मुझे गुरु दक्षिणा में शेष नाग का सिर चाहिए.” परशुराम जैसे ही शेष नाग का सिर लाने के लिए निकले उन्हें शिव धनुष टूटने की आवाज आई.

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परशुराम को पता चला की शेषनाग ने राम के भाई लक्षमण के रूप में धरती पर जन्म लिया हैं. और इस वक्त शेषनाग राजा जनक के दरबार में हैं. परशुराम भी वहा पहुचे उन्होंने कही बार लक्ष्मण के सिर को काटने की कोशिश की लेकिन सफल नहीं हुए. आख़िरकार उन्हें पता चला की राम ही भगवान विष्णु हैं. भगवान विष्णु के प्रति अपनी श्रदा और प्रेम के भाव के कारण उन्होंने लक्ष्मण का सिर काटने की मंशा मन से निकल दी. इस प्रकार भगवान परशुराम गुरु की दक्षिणा कभी नहीं दे पाए.

परशुराम जी का जीवन परिचय – परशुराम का जन्म स्थान

भगवान परशुराम विष्णु भगवान के छठे अवतार थे. उन्होंने त्रेता युग में रामायण काल में जन्म लिया था. भगवान परशुराम का उल्लेख रामायण, महाभारत, कल्कि पुराण और भागवत पुराण में मिलता हैं. उनका जन्म भगवान राम के पहले का था. उनका जन्म वैशाख शुक्ल तृतीय को मध्यप्रदेश के इंदौर के मानपुर गाँव के जनापाव पर्वत पर हुआ था. उनके पिताजी महर्षि भृगु के पुत्र महर्षि जमदग्नि थे. महर्षि जमदग्नि  के यज्ञ से प्रसन्न होकर देवराज इंद्र के आशीर्वाद उनको पुत्र प्राप्ति हुई.

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भगवान परशुराम शस्त्र विधा के महान ज्ञानी थे. उन्होंने महाभारत युध्द के प्रमुख योध्दाओ को शस्त्र विधा सिखाई थी. परशुराम ने भीष्म, कर्ण और द्रोण  को शस्त्र विधा सिखाई थी. उनके माता-पिता ने उनका नाम सिर्फ राम ही रखा था. लेकिन शिव जी से उनको परशु धारण होने के कारन उनका नाम ‘परशुराम’ कहा गया. महर्षि जमदग्नि पुत्र होने के कारन परशुराम को ‘जामदग्न्य’ भी कहा जाता हैं.

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परशुराम शब्द में परशु से तात्पर्य पराक्रम से हैं. और राम से तात्पर्य सनातन धर्म से हैं. अंत परशुराम का अर्थ पराक्रम के कारक और सत्य के धारक से हैं. एक व्याख्या के अनुसार परशु में भगवान शिव समाहित होते हैं. और राम में भगवान विष्णु समाहित होते हैं. अंत भले ही परशुराम भगवान विष्णु के अवतार हो. लेकिन उनके व्यव्हार में भगवान शिव और विष्णु का समन्वय दिखता हैं.

भगवान परशुराम का जन्म भले ही भगवान राम के पहले का था. लेकिन परशुराम को चिरंजीवी होने का आर्शीवाद प्राप्त था. अंत परशुराम का वर्णन राम और कृष्ण दोनों काल की व्याखयो में मिलता हैं. परशुराम भगवान का जन्म सतयुग और त्रेता युग का संधि माना जाता हैं. क्योंकि सतयुग में भी परशुराम और भगवान गणेश की व्याख्या मिलती हैं.

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परशुराम और गणेश जी की कहानी

सतयुग में जब गणेश जी ने परशुराम को भगवान शिव से मिलने से रोक दिया था. तो गुस्से से लाल होकर भगवान परशुराम ने अपने परशु से गणेश के एक दांत को तोड़ दिया था. इसी कारन गणेश जी को एकदंत कहा जाता हैं. परशुराम को अहंकारी और धृष्ट हैहय वंशी क्षत्रियो का 21 बार पृथ्वी से संहार करने के लिए जाना जाता हैं.

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भगवान परशुराम ने धरती पर वैदिक संस्कृति को स्थापित करने के लिए भारत के अनेक गाँवो को बसाया था. पौराणिक मान्यताओ के अनुसार भगवान परशुराम ने तीर चलाकर गुजरात से केरला तक समुन्द्र को पीछे धकेल कर नई भूमि का निर्माण किया था. इसी वजह से कोंकण, गोवा और केरल में भगवान परशुराम वन्दनीय हैं.

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निष्कर्ष

इस आर्टिकल (Bhagwan Parshuram ke guru kaun the | Bhagwan Parshuram story in hindi ) को लिखने का हमारा उद्देश्य आपको भगवान परशुराम के बारे में जानकारी देना हैं. भगवान परशुराम के गुरु शिव थे. भगवान परशुराम शस्त्र विधा के ज्ञाता थे. उन्होंने कर्ण, भिष्म और द्रोण को शस्त्र की शिक्षा दी थी. भगवान परशुराम को वैदिक धर्म के प्रचार के लिए जाना जाता हैं. भगवान परशुराम हमेशा माता, पिता और गुरुओ का आदर और सत्कार करते थे.

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