Gupt vansh ka antim shasak kaun tha | गुप्त वंश का इतिहास , प्रतीक चिन्ह, पतन का कारण

Gupt vansh ka antim shasak kaun tha | गुप्त वंश का इतिहास , प्रतीक चिन्ह, पतन का कारण – प्राचीन कल में भारत में अनेक वीर राजाओ और सम्राटो में शासन किया है. जिनका मुख्य उद्देश्य अपने राज्य की रक्षा करने के साथ जनता की सेवा करना था. सम्राट अशोक को हमेशा चक्रवती राजा के रूप में याद किया जाता है. लेकिन भारत का इतिहास गुप्त वश के वर्णन के बिना अधूरा है इसलिए इस आर्टिकल में हम गुप्त वंश के बारे में जानकारी प्राप्त करेंगे.

इस आर्टिकल में हम जानेगे की गुप्त वश की संस्थापक और अंतिम शासक कौन थे. इसके साथ ही इस आर्टिकल में गुप्त वश के इतिहास को भी पढ़ेंगे.

gupt vansh ka antim shasak | गुप्त वंश का अंतिम शासक कौन है

गुप्त वंश का अंतिम शासक सम्राट विष्णु गुप्त था. और गुप्त वंश का प्रथम महान शासक चन्द्रगुप्त थे. चन्द्रगुप्त ने  सन 320 ईसा पूर्व  से 335 ईसा पूर्व तक अपना शासन संभाला था.

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गुप्त साम्राज्य की स्थापना किसने की थी | गुप्त वंश के संस्थापक का नाम क्या है 

गुप्त साम्राज्य की स्थापना सम्राट श्री गुप्त के द्वारा की गई थी. सन 240 से 280 ईसा पूर्व तक सम्राट श्री गुप्त ने अपने राज्य की राजगद्दी संभाली. एवं राजा बनकर अपने राज्य पर शासन किया. उसके पश्चात श्री गुप्त के पुत्र घटोत्कच ने सन 280 से 320 ईसापूर्व राजगद्दी संभाली और अपना शासन चलाया. सन 320 के बाद चन्द्रगुप्त प्रथम घटोत्कच का पुत्र राजा बना. जो अपनी वंशावली का प्रथम स्वतंत्र राजा था. चंदगुप्त ने महाराजाधिराज की उपाधि प्राप्त की थी.

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गुप्तवंश के बाद कौनसा वंश आया था 

पांचवी शताब्दी के बाद गुप्त वंश के पतन की शुरुआत हो गई. गुप्त साम्राज्य के पतन के साथ साथ मगध एवं पाटलिपुत्र ने भी अपना महत्व खो दिया था. गुप्त काल के बाद जो वंश आया वह बहुत अशांत माना जाता है. गुप्त वंश के पतन के बाद हुण, मौखरी, मैत्रक, पुष्यभूति एवं गौड़ यह पांच वंश आए.

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गुप्तवंश का प्रतीक चिन्ह

गुप्त वंश का प्रतीक चिन्ह गरुड को माना जाता है. इनकी जो शाही मुहर थी उस मुहर पर गरुड़ का चिन्ह अंकित था. 

गुप्त वंश का इतिहास

गुप्त साम्राज्य का उदय तीसरी शताब्दी में प्रयाग के पास स्थित कौशाम्बी में हुआ था. श्री गुप्त इस वंश के प्रथम राजा एवं संस्थापक माने जाते है. प्रारंभिक गुप्त वंश का साम्राज्य गंगा द्रोणी, प्रयाग, मगध एवं अयोध्या तक फैला हुआ था. श्री गुप्त के बाद उनके पुत्र घटोत्कच ने राजगद्दी संभाली और अपने राज्य का शासन संभाला. इस राजा का राज्य मगध के आसपास तक सिमित था. प्रभावती गुप्ता के रिद्रपुर ताम्रपत्र अभिलेख में इस राजा को अपने वंशज का प्रथम राजा बताया गया है.

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गुप्त वंश प्राचीन समय का सबसे प्रमुख राजवंशो में से एक था. उस समय के कुछ इतिहासकारों के अनुसार गुप्त साम्राज्य उस स्वर्ण युग माना जाता था. मौर्य वंश के पतन के बाद तीसरी शताब्दी के दौरान तिन राजवंशो का उदय हुआ. यह तिन राजवंश मध्य भारत में नाग शक्ति, दक्षिण भारत में वाकाटक एवं पूर्वी भारत में गुप्त वंश प्रमुख रहे. मौर्य वंश के पतन के बाद राजनितिक एकता नष्ट हो गई थी। इस एकता को फिर से पुन:स्थापित करने का श्रेय गुप्तवंश को ही जाता है.

गुप्तवंश का प्रारंभिक राज्य अभी के उतर प्रदेश एवं बिहार रहे है. गुप्त वंश के प्रथम सम्राट चन्द्रगुप्त प्रथम थे. चन्द्रगुप्त को महाराजाधिराज की उपाधि प्राप्त हुई थी. चंदगुप्त ने विवाह द्वारा लिच्छवी के साथ गुप्ता को एक  किया. चंदगुप्त के पुत्र समुद्र ने अपने राज्य का विजय हासिल करके विस्तार किया. यह विस्तार होने से गुप्ता शक्ति का भी विस्तार हुआ. गुप्तवंश ने मध्य भारत और गंगा घाटी के राजाओ को समाप्त करके अपने राज्य का विस्तार कर लिया.

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इस राज्य के तीसरे शासक चन्द्रगुप्त द्रितीय को उजैन तक राज्य को विस्तार करने के लिए मनाया गया. लेकिन उनका सैन्य विजय की तुलना में सांस्कृतिक उपलब्धियों से ज्यादा जुड़ा था. उनके उतराधिकारी कुमारा गुप्ता एवं स्कंद गुप्ता ने आक्रमण के दौरान उनके साम्राज्य का पतन देखा. 6वी शताब्दी के मध्य तक जब राजवंश का पतन हुआ तब तक राज्य बहुत छोटा हो चूका था.

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उसके पश्चात बहुत राजा गुप्त वंश के शासक बने. जैसे की चन्द्रगुप्त के बाद उनका पुत्र सुमद्र गुप्त राजा बना. उसके बाद रामगुप्त, चन्द्रगुप्त द्रितीय विक्रमादित्य, कुमारगुप्त प्रथम, स्कन्द गुप्त इन अभी राजा ने क्रमश: शासन संभाला. हालाकि स्कन्द गुप्त की मृत्यु सन 467 में हुई उसके बाद भी कही  राजा आए जैसे की पुरुगुप्त, कुमारगुप्त द्रितीय, बुधगुप्त, नरसिह गुप्त बालादित्य, कुमार गुप्त तृतीय ,दामोदर गुप्त, महासेन गुप्त, देव गुप्त, माधव गुप्त यह सभी राजा आए और अपना शासन स्कन्द गुप्त के बाद 100 वर्ष तक चलाया.

गुप्त वंश का पतन का कारण

गुप्त वंश के पतन के अनेक कारन है, जो निम्नलिखित है:

  • गुप्त वंश के पतन कारण अकुशल राजशाही
  • विदेशी आक्रमण
  • अकुशल प्रशासन 
  • बौद्ध धर्म का प्रसार इत्यादि

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निष्कर्ष

इस आर्टिकल (Gupt vansh ka antim shasak kaun tha | गुप्त वंश का इतिहास , प्रतीक चिन्ह, पतन का कारण – ) को लिखने का हमरा उद्देश्य आपको गुप्त वंश के बारे में विस्तार से जानकारी देना है. गुप्त साम्राज्य की स्थापना सम्राट श्री गुप्त के द्वारा की गई थी. तथा गुप्त वंश का अंतिम शासक सम्राट विष्णु गुप्त था. और गुप्त वंश का प्रथम महान शासक चन्द्रगुप्त थे. चन्द्रगुप्त ने  सन 320 ईसा पूर्व  से 335 ईसा पूर्व तक अपना शासन संभाला था.

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