श्रवण कुमार के माता पिता का नाम क्या था | श्रवण कुमार की कहानी

श्रवण कुमार के माता पिता का नाम क्या था |श्रवण कुमार के माता पिता का क्या नाम था | श्रवण कुमार की कहानी | shravan kumar ke mata pita ka kya naam tha | sarvan kumar ke mata pita ka kya naam tha – हिन्दू धर्म का पवित्र ग्रन्थ रामायण हमे जीवन जीने की कला बताता हैं. यह प्रभु श्री राम के जीवन और आदर्शो की कहानी हैं. लेकिन इसी ग्रन्थ ने एक कहानी श्रवण  कुमार की भी हैं. जिन्हें इतिहास में अपने माता-पिता के प्रति सच्चे समपर्ण के लिए जाना जाता हैं. इस आर्टिकल में हम श्रवण  कुमार के माता पिता और उनकी कहानी के बारे में जानेगे.

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श्रवण  कुमार कौन थे?

श्रवण कुमार को अपने माता-पिता के प्रति उनके समपर्ण के लिए जाना जाता हैं. श्रवन कुमार ने अपने बूढ़े और अंधे माता-पिता को तीर्थ यात्रा कराने के लिए टोकरियो में बैठा कर अपने कंधो पर उठाया. और पैदल अपने माता-पिता की इच्छा को पूर्ण करने के लिए निकल गए थे. इसलिए श्रवण कुमार को अपने माता-पिता से प्रेम और त्याग की भावना के लिए आज भी याद किया जाता हैं.

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श्रवण कुमार पवित्र ग्रन्थ रामायण का एक मुख्य पात्र हैं. तथा उनकी कहानी रामायण के काल की हैं. त्रेता युग में श्रवण कुमार का जन्म हुआ था. उनके माता-पिता गरीब थे. इसलिए जैसे ही बड़े हुए. अपने माता-पिता के साथ कार्य करने लग गए. और उन्होंने अपने बूढ़े माता-पिता के प्रति अपनी जिम्मेदारी का निर्वाह करना शुरू कर दिया था.

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श्रवन कुमार को अपनी मातृभक्ति और पितृभक्ति के लिए जाना जाता हैं. उनके माता का नाम ज्ञानविन्ती और पिताजी का नाम शांतनु था.

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श्रवण कुमार की कहानी

वाल्मीकि की रामायण के अनुसार श्रवण कुमार से एक बार उनके बूढ़े माता पिता ने तीर्थ पर ले जाने की बात कहि और कहा की “बेटा, तुमने जिन्दगी भर हमारी सेवा की हैं. हम चाहते हैं की तुम्हारे जैसा बेटा इस दुनिया में प्रत्येक माता-पिता को मिले. हमारी एक अंतिम इच्छा हैं. हम तीर्थ यात्रा करना चाहते हैं. उसके बाद हम शांति से भगवान के चरणों में मर भी जाएँगे. तो हमे बहुत शांति मिलेगी”.

चूँकि श्रवण कुमार अपने माता-पिता की सेवा में हमेशा समर्पित रहते थे. इसलिए उन्होंने अपने माता-पिता को तीर्थ पर ले जाने का निश्चय किया. लेकिन उनके माता-पिता चल और देख नहीं सकते थे. और उस समय गाड़ी या रेलगाड़ी नहीं होती थी. और उनकी स्थिति इतनी अच्छी भी नहीं थी. जिससे वह घोडा गाड़ी का बंदोबस्त कर सके. अत उन्होंने एक तरकीब नीकाली.

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श्रवण कुमार ने दो टोकरिय ली. और दोनों टोकरियो को रस्सी से लकड़ी के दोनों सिरों पर बांध लिया. उन्होंने दोनों टोकरियो में अपने माता-पिता को बैठा दिया. इसको उन्होंने अपने कंधो पर उठाया. और खुद ने एक लकड़ी अपने हाथ में सहारे के लिए ले ली. इस प्रकार से अपने माता-पिता को उठा कर श्रवण कुमार पैदल ही तीर्थ यात्रा के लिए निकल गए.

श्रवण कुमार ने पैदल ही अपने अंधे माता-पिता को उठा कर एक-एक करके प्रयाग, काशी और रुद्रप्रयाग तीर्थ गए. चूँकि उनके माता-पिता देख नहीं सकते थे. वह अपने माता-पिता को बोल के तीर्थ के बारे में जानकारी देते थे. और उन्हें आस-पास के वातावरण का अनुभव कराते थे.

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इस प्रकार श्रवण कुमार अयोध्या नगरी अपने माता-पिता को लेके पहुचे. जब वह जंगल से गुजर रहे थे. तब उनके माता ने उनसे गर्मी से मुह सूखने के कारन पानी की इच्छा जताई. श्रवण कुमार कमंडल लेकर अपने माता के लिए पानी लेने चले गए.

उसी समय राजा दशरथ जंगलो में शिकार के लिए निकले हुए थे. राजा दशरथ सिर्फ आवाज सुन कर शिकार की स्थिति का पता लगा सकते थे. और तीर से प्रहार करने में माहिर थे. जैसे ही श्रवण कुमार ने पानी लेने के लिए नदी में अपना कमंडल डाला. दशरथ को पानी की आवाज आई. उन्हें लगा की कोई जंगली जानवर पानी पिने के लिए नदी पर आया हैं.

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आवाज सुनते ही दशरथ ने तीर चला दी. तीर श्रवण कुमार के शरीर के आर-पार पर चला गया. जब दशरथ शिकार को देखने वहा पहुचे. तो अपनी गलती का अहसास हुआ. उन्होंने श्रवण कुमार से कहा “माफ़ करना भाई, मेरे से बहुत बड़ी गलती हुई. मै तुम्हारे लिए क्या कर सकता हु.”

श्रवण कुमार ने कहा की मेरे बूढ़े और अंधे माता-पिता को पानी पिला दो. और उन्हें मेरे बारे में कुछ नहीं बताना. श्रवण कुमार ने यह कह कर प्राण त्याग दिए.

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दशरथ पानी लेकर श्रवण के माता-पिता के पास पहुचे. और उनके चरण को स्पर्श किया. उनकी माता ने कहा “ कौन हो तुम, तुम मेरे श्रवण नहीं हो सकते हो. मेरा श्रवण कहा हैं.”

राजा दशरथ ने कहा “मुझे क्षमा कर देना, दुर्भाग्य से मेरा तीर श्रवण कुमार के सिने में लग गया. उन्होंने मुझे आपको पानी पिलाने के भेजा हैं”.

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इतना सुनकर श्रवण कुमार के माता-पिता वही पर चिल्लाते हुए रोने लगे. वह दोनों यह दुःख सहन नहीं कर पाए. और आख़िरकार रो-रो कर वही पर दोनों ने अपने प्राण त्याग दीए.

कहा जाता हैं इन्सान जो करता हैं. उसका फल भी उसे इसी जन्म में भुगतना पड़ता हैं. रामजी के चौदह सालो के वनवास के जाने के बाद दशरथ ने भी अपने प्राण पुत्र वियोग में त्याग दीए थे. श्रवण कुमार को अपने माता-पिता की भक्ति के लिए जाना जाता हैं.

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निष्कर्ष

इस आर्टिकल (श्रवण कुमार के माता पिता का नाम क्या था |श्रवण कुमार के माता पिता का क्या नाम था | श्रवण कुमार की कहानी ) को लिखने का हमारा उद्देश्य आपको एक आज्ञाकारी पुत्र श्रवन कुमार के बारे में बताना हैं. श्रवन कुमार को इतिहास में अपनी मातृभक्ति और पितृभक्ति के लिए जाना जाता हैं. उनके माता का नाम ज्ञानविन्ती और पिताजी का नाम शांतनु था. इसका जन्म रामायण के समय त्रेता युग में हुआ था.

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