Ganesh atharvashirsha mantra /stotra in hindi pdf download

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Shree Ganesh atharvashirsha mantra/stotra / path in hindi pdf download

श्री गणेश अथर्वशीर्ष मंत्र / स्त्रोत / पाठ हिंदी में अर्थ के साथ

श्री गणेशाय नमः ।

अर्थात:- हे! देवता महा गणपति को मेरा प्रणाम |

ॐ नमस्ते गणपतये ।
त्वमेव प्रत्यक्षन् तत्त्वमसि ।
त्वमेव केवलङ् कर्ताऽसि ।
त्वमेव केवलन् धर्ताऽसि ।
त्वमेव केवलम् हर्ताऽसि ।

अर्थात:- हे, भगवान, आप को प्रणाम, केवल आप ही प्रत्यक्ष हो, भगवान आप ही केवल कर्म और कर्ता हो, भगवान आप ही पालनकर्ता और हरनकर्ता हो.

त्वमेव सर्वङ् खल्विदम् ब्रह्मासि ।
त्वं साक्षादात्माऽसि नित्यम् ।।

अर्थात:- भगवान आप ही इस ब्रह्माण्ड में व्याप्त हो. भगववान सिर्फ आप ही एक साक्षात् आत्मस्वरूप हो.

ऋतं वच्मि । सत्यं वच्मि ।।

अर्थात:- मै वास्तविक बात कहता हु, सच्चाई ही बोलता हु.

अव त्वम् माम् । अव वक्तारम् ।
अव श्रोतारम् । अव दातारम् ।अव धातारम् । 

अर्थात:- हे भगवंत, आप मेरी रक्षा कीजिये. आप मेरे शिष्य की रक्षा कीजिये| मेरे आचार्य की रक्षा कीजिये. मुझे सुनने वालो की रक्षा कीजिये. मेरे दाता की रक्षा कीजिये और मेरे धाता की रक्षा कीजिये.

अवानूचानमव शिष्यम् ।अव पश्चात्तात् । अव पुरस्तात् ।
अवोत्तरात्तात् । अव दक्षिणात्तात् ।

अर्थात:- व्याख्या करने वाले आचार्य की रक्षा कीजिये. व्याख्या को सुनने वाले शिष्य की रक्षा कीजिये. चारो दिशाओ से रक्षा कीजिये. पश्चिम दीक्षा से रक्षा कीजिये. पूर्व दीक्षा से रक्षा कीजिये| उत्तर दीक्षा से रक्षा कीजिये. दक्षिण दीक्षा से रक्षा कीजिये.

अव चोध्र्वात्तात् । अवाधरात्तात् ।
सर्वतो माम् पाहि पाहि समन्तात् ।।

अर्थात:- ऊपर से रक्षा कीजिये भगवान| निचे से रक्षा कीजिये भगवंत|सब दिशाओ से हमारी रक्षा कीजिये|

त्वं वाङ्मयस्त्वञ् चिन्मयः ।
त्वम् आनन्दमयस्त्वम् ब्रह्ममयः ।

अर्थात:- भगवान आप ही विद्वान है. आप ही ज्ञानवान हो. भगवान आप आनंदमय हो. आप परम चेतनामय है.

त्वं सच्चिदानन्दाद्वितीयोऽसि ।
त्वम् प्रत्यक्षम् ब्रह्मासि ।
त्वम् ज्ञानमयो विज्ञानमयोऽसि ।।

अर्थात:- आप अदित्य रूप हो. आप ही सच्चिदानंद हो. भगवान आप ही प्रत्यक्ष ब्रह्म हो. आप ही ज्ञान और विज्ञान के दाता हो.

सर्वञ् जगदिदन् त्वत्तो जायते ।
सर्वञ् जगदिदन् त्वत्तस्तिष्ठति ।
सर्वञ् जगदिदन् त्वयि लयमेष्यति ।
सर्वञ् जगदिदन् त्वयि प्रत्येति ।

अर्थात:- हे भगवंत, इस जगत को आपने उत्पन्न किया है. इस जगत को आप ही सुरक्षा प्रदान करते हो. यह सारी दुनिया आप में लीन है. यह सारा जगत आप में प्रतीत होता है.

त्वम् भूमिरापोऽनलोऽनिलो नभः ।
त्वञ् चत्वारि वाव्पदानि ||

अर्थात:- भगवान आप ही जल, वायु, अग्नि, और आकाश हो. हे भगवंत, आप ही चारो दीक्षाओ में व्याप्त हो.

त्वङ् गुणत्रयातीतः ।
(त्वम् अवस्थात्रयातीतः ।)
त्वन् देहत्रयातीतः । त्वङ् कालत्रयातीतः ।
त्वम् मूलाधारस्थितोऽसि नित्यम् ।

अर्थात:- भगवान आप सत्व, रज, और तम तीनो गुणों से परे हों. आप तीनो देहों से परे हो. भगवान आप तीनों कालो भूत, भविष्य, और वर्तमान से परे हैं. भगवान आप हमेशा जीवन के मूल आधार में विराजमान रहते हैं.

त्वं शक्तित्रयात्मकः ।
त्वां योगिनो ध्यायन्ति नित्यम् ।

अर्थात:- भगवान तीनो शक्तिया इच्छा, क्रिया और ज्ञान आप ही हो. योगीजन नित्य भगवंत आप का ध्यान करते है.

त्वम् ब्रह्मा त्वं विष्णुस्त्वम् रुद्रस्त्वम्
इन्द्रस्त्वम् अग्निस्त्वं वायुस्त्वं सूर्यस्त्वञ चन्द्रमास्त्वम्
ब्रह्मभूर्भुवः स्वरोम्||6||

अर्थात:- हे भगवान, आप ही ब्रह्मा हो, विष्णु हो, रूद्र हो, इंद्र हो, अग्नि हो, वायु हो, सूर्य हो, चंद्रमा हो. भगवान आप में तीनो लोको पृथ्वी, आकाश, स्वर्ग का समावेश हैं. ॐकार परम ब्रह्म भी आप ही हो.

गणादिम् पूर्वमुच्चार्य
वर्णादिन् तदनन्तरम् ।
अनुस्वारः परतरः । अर्धेन्दुलसितम् ।
तारेण ऋद्धम् । एतत्तव मनुस्वरूपम् ।
गकारः पूर्वरूपम् । अकारो मध्यमरूपम् ।
अनुस्वारश्चान्त्यरूपम् ।
बिन्दुरुत्तररूपम् ।
नादः सन्धानम् । संहिता सन्धिः ।
सैषा गणेशविद्या । गणक ऋषिः ।निचृद्गायत्री छन्दः । गणपतिर्देवता ।
ॐ गँ गणपतये नमः ।।

अर्थात:- ‘गण’ शब्द का उच्चारण करने के पश्चात् आदिवर्ण आकार का उच्चारण करे. ॐ कार का उच्चारण करे. इस प्रकार पुरे मन्त्र ॐ गं गणपतये नम: का भक्ति भाव से उच्चारण करे.

एकदन्ताय विद्महे । वक्रतुण्डाय धीमहि ।
तन्नो दन्तिः प्रचोदयात्|

अर्थात:- एकदंत वक्रतुंड का हम ध्यान करते है. गजानन महाराज हमे इस सद मार्ग पर चलने की प्रेरणा प्रदान करे.

एकदन्तञ् चतुर्हस्तम्,
पाशमङ्कुशधारिणम् ।
रदञ् च वरदम् हस्तैर्बिभ्राणम्,
मूषकध्वजम् ।रक्तं लम्बोदरं,
शूर्पकर्णकम् रक्तवाससम् ।
रक्तगन्धानुलिप्ताङ्गम्,
रक्तपुष्पैःसुपूजितम् ।
भक्तानुकम्पिनन् देवञ्,
जगत्कारणमच्युतम् ।
आविर्भूतञ् च सृष्ट्यादौ,
प्रकृतेः पुरुषात्परम् ।
एवन् ध्यायति यो नित्यं
स योगी योगिनां वरः ||

अर्थात:- भगवान गणेश जी एक दन्त और चार भुजाओ वाले है. गणेश जी अपने हाथों में पाश, अंकुश, दन्त, और वर मुद्रा रखते है. उनके ध्वज में मोचक का चिन्ह है. भगवान लाल वस्त्र धारण करते है. और चन्दन का लेप लगाते है. लाल पुष्प को धारण करते है. सभी भक्तो की मनोकामना पूरी करने वाले है. और पुरे जगत में व्याप्त है. इस जगत के रचयिता है.

जो इस भाव से भगवान गणेश जी को हर रोज याद करता है. ऐसे योगी को सभी योगियों से उच्चा स्थान प्राप्तहोता है. वह महा योगी होता है.

नमो व्रातपतये, नमो गणपतये,
नमः प्रमथपतये,
नमस्ते अस्तु लम्बोदराय एकदन्ताय,
विघ्ननाशिने शिवसुताय,
वरदमूर्तये नमः ||

अर्थात:- देव समूह के नायक, गण समूह के नायक को प्रणाम. प्रथम के अधिनायक को नमस्कार. लम्बोंदर, एकदंत, विध्नविनाशक और शिवजी के पुत्र को बारम्बार नमस्कार.

एतदथर्वशीर्षं योऽधीते ।
स ब्रह्मभूयाय कल्पते ।
स सर्वविघ्नैर्न बाध्यते ।
स सर्वतः सुखमेधते ।
स पञ्चमहापापात् प्रमुच्यते ।
सायमधीयानो दिवसकृतम्
पापन् नाशयति ।
प्रातरधीयानो रात्रिकृतम्
पापन् नाशयति ।
सायम् प्रातः प्रयुञ्जानोऽअपापो भवति ।
सर्वत्राधीयानोऽपविघ्नो भवति ।
धर्मार्थकाममोक्षञ् च विन्दति ।
इदम् अथर्वशीर्षम् अशिष्याय न देयम् ।
यो यदि मोहाद्दास्यति
स पापीयान् भवति ।
सहस्रावर्तनात् ।
यं यङ् काममधीते
तन् तमनेन साधयेत् ।।

अर्थात:- वह विघ्नों से दूर रहता है जो अथर्वशीष के पाठ को करता है. जो अथर्वशीष के पाठ को करता वह सदा सुखी रहता है. पंच महा पाप से दूर रहता है. संध्या काल में अथर्वशीष के पाठ को करने पर दिन के दोष दूर हो जाते है. और सुबह भौर में पाठ करने पर रात्रि के पाप दूर हो जाते है. और जो हमेशा पाठ को करना रहता है वह दोष से रहित रहता है. और वह व्यक्ति धर्म, कर्म, काम और मोक्ष से छुटकारा पा लेता है. अथर्वशीष के पाठ को एक हजार बार करने के पश्चात् उपासक सिद्दी को प्राप्त कर के योगी बन जाता है.

अनेन गणपतिमभिषिञ्चति ।
स वाग्मी भवति ।
चतुथ्र्यामनश्नन् जपति
स विद्यावान् भवति ।
इत्यथर्वणवाक्यम् ।
ब्रह्माद्यावरणम् विद्यात् ।
न बिभेति कदाचनेति ।।

अर्थात:- जो व्यक्ति गणेश की अभिषेक के साथ गणेश जी के मन्त्र का जाप करता है. उस व्यक्ति की वाणी उसकी दासी हो जाती है. जो व्यक्ति चतुर्थी के दिन उपवास करता है और गजानंद महाराज का जाप करता है. वो विद्वान बन जाता है. जो ब्रह्मादि आवरण को जानता है वह भय मुक्त होता हैं.

यो दूर्वाङ्कुरैर्यजति ।
स वैश्रवणोपमो भवति ।
यो लाजैर्यजति, स यशोवान् भवति ।
स मेधावान् भवति ।
यो मोदकसहस्रेण यजति ।
स वाञ्छितफलमवाप्नोति ।
यः साज्यसमिद्भिर्यजति
स सर्वं लभते, स सर्वं लभते ।।

अर्थात:- जो व्यक्ति दुर्वकुरो से पूजा करता है वो कुबेर की भाति धनवान बनता है. जो व्यक्ति लाजा के साथ पूजा करता है वह व्यक्ति मेधावी बनता है. और जो पूजा में गणेश जी को मोदक भोग चढ़ाता है. उसके मन की मनोकामना प्रभु हमेशा पूरी करते है. वह व्यक्ति सब कुछ पा लेता है जो घृतात्क समिधा के द्वारा हवन करता है.

अष्टौ ब्राह्मणान् सम्यग्ग्राहयित्वा,
सूर्यवर्चस्वी भवति ।
सूर्यग्रहे महानद्याम् प्रतिमासन्निधौ
वा जप्त्वा, सिद्धमन्त्रो भवति ।
महाविघ्नात् प्रमुच्यते ।
महादोषात् प्रमुच्यते ।
महापापात् प्रमुच्यते ।
स सर्वविद् भवति, स सर्वविद् भवति ।
य एवम् वेद ।।

अर्थात:- जो व्यक्ति आठ ब्राह्मणों को उपनिषद का ज्ञाता बनाता है. वह सूर्य के समान तेजस्वी होता है. सिद्धि प्राप्त करने के लिए सूर्य ग्रहण के समय नदी के तट पर अथवा इष्ट के समीप उपनिषद का पाठ करना चाहिए. यह ऐसी ब्रह्म विधा है जिससे जीवन की रुकावट दूर हो जाती है. सारे पाप कट जाते है. और व्यक्ति विद्वान बन जाता है.

शान्तिमन्त्र

ॐ भद्रङ् कर्णेभिः शृणुयाम देवाः ।
भद्रम् पश्येमाक्षभिर्यजत्राः ।
स्थिरैरङ्गैस्तुष्टुवांसस्तनूभिः
व्यशेम देवहितं यदायुः ।।

अर्थात:- हे भगवंत, हमारे कानो में सिर्फ ऐसे शब्द पड़े जो हमे ज्ञान दे. निंदा और दुराचार से हमेशा दूर रखे. हम हमेशा बुरे कर्मो से दूर रहे और समाज के कल्याण में अपना जीवन लगाए. भगवान की भक्ति में लीन रहे. हमे भोग विलास की भावना से दूर रखे. और आप सदैव हमारे स्वास्थ्य का ध्यान रखे. आपसे यही प्रार्थना है की हमारे कर्म, मन और धन में हमेशा परमेश्वर का वास हो.

ॐ स्वस्ति न इन्द्रो वृद्धश्रवाः ।
स्वस्ति नः पूषा विश्ववेदाः ।
स्वस्ति नस्ताक्ष्र्योऽअरिष्टनेमिः
स्वस्ति नो बृहस्पतिर्दधातु ।।
ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ।।

अर्थात:- जो देवों के देव इन्द्र देव है जिनकी चारों दिशाओ में ख्याति है उनके जैसी जिसकी ख्याति है. जो ज्ञान का अपार भंडार है. जिनमे बृहस्पति के समान अपार शक्तिया है. जिसके मार्गदर्शन से समस्त मानव जाती का भला होता है. और कर्म को दिशा मिलती है.

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