bhartiya puratatva ka pita kise kaha jata hai | भारतीय पुरातत्व अधिनियम क्या है | भारतीय पुरातत्व का इतिहास , स्थापना, वर्तमान महानिदेशक – हड़प्पा और मोहनजोदड़ो की खुदाई करने पर प्राचीन भारत की समृद्द सस्कृति के अवधेशेष प्राप्त होते है. जिससे पता चलता है की भारत प्राचीन काल में कितना सुव्यवस्थित था. हमारे देश में इस प्रकार की खुदाई और ऐतिहासिक स्मारकों के संरक्षण की जिम्मेदारी भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के पास होती है.
लेकिन आपको पता है की भारतीय पुरातत्व के पिता किसे कहा जाता है. तो इस आर्टिकल में हम बताएगे की भारतीय पुरातत्व के पिता किसे कहा जाता है. इसके साथ ही इस आर्टिकल में हम आपको भारतीय पुरातत्व के इतिहास की भी जानकारी देगे.
भारतीय पुरातत्व का पिता किसे कहा जाता है
भारतीय पुरातत्व का पिता सर अलेक्जेंडर कनिंघम को कहा जाता है.
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सर अलेक्जेंडर कनिंघम कौन थे
सर अलेक्जेंडर कनिघम का जन्म 23 जनवरी 1814 में लंदन में हुआ था. उनकी नागरिकता ग्रेट ब्रिटेन और आयरलैंड की यूनाइटेड किंगडम थी. उनका व्यवसाय कला, इतिहासकार और अभियंता था. वह ब्रिटिश सेना के बंगाल इंजिनियर ग्रुप में इंजिनियर थे. जो बाद में भारतीय पुरातत्व, ऐतिहासिक भूगोल तथा इतिहास के विद्वान के रूप में सुप्रसिद्ध हुए.
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इनके दोनों भाई थे जिनका नाम फ्रेंसिस कनिघम और जोसफ कनिघम था. उन्होंने ने भी ब्रिटिश भारत में ख्याति प्राप्त की थी. भारत के अंग्रेजी सेना में वह उच्च पदों पर वह कार्यरत रहे थे. और सन 1869 में मेजर जनरल के पद से निवृत हुए थे. उन्हें उनके योगदान के लिए ओर्डर ऑफ़ स्टार ऑफ़ इंडिया और ओर्डर ऑफ़ इंडियन एम्पायर से समानित किया गया. सन 1887 में उन्हें नाइट कमांडर ऑफ़ इंडियन एम्पायर घोषित किया गया.
सर अलेक्जेंडर कनिघम को भारतीय इतिहास में शुरू से काफी रूचि थी. सन 1872 में सर अलेक्जेंडर कनिघम को भारतीय पुरातत्व का सर्वेक्षण बनाया गया. उन्होंने भारतीय विधा के शोधक जेम्स प्रिन्सिस के प्राचीन सिक्को के लेख खरोष्टि लिपि को पढने में सहायता की थी. मेजर कीटो जो सरकार की ओर से प्राचीन भारतीय स्थानों की खोज कर रहे थे. उन्हें भी सर अलेक्जेंडर कनिघम ने अपना मूल्यवान सहयोग दिया था.
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पुरातत्व विभाग में उच्च पदों पर कार्य करते हुए. उन्होंने भारत के प्राचीन विस्मृत इतिहास के विषय में विभिन्न जानकारीया दुनिया के समक्ष रखी.
भारतीय पुरातत्व अधिनियम क्या है
हमारे देश की धरोहर को सुरक्षित करने के लिए भारत सरकार ने प्राचीन स्मारकों तथा स्थलों के रखरखाव और सुरक्षा के लिए अधिनियम बनाए. जिससे प्राचीन इमारतो, धरोहरों, स्मारकों की रक्षा और संरंक्षण प्रदान किया जा सके. इन अधिनियम को ही भारतीय पुरातत्व अधिनियम कहा गया है.
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प्राचीन स्मारकों तथा पुरातत्वीय स्थल और अवशेष अधिनियम 1958 के प्रवधानो के अनुसार भारतीय पुरातत्व अधिनियम भारत के सभी पुरातत्वीय कार्यो को विनियमित करता है. था यह बहुमूल्य कलाकृति अधिनियम 1972 को भी नियंत्रित करता है.
भारतीय पुरातत्व का इतिहास
वर्ष 1817 में डेनिश विद्वान सी.जे. थामसन ने पुरातत्व के शुरुआती चरणो को पाषण युग, कांस्य युग तथा लौह युग में विभाजित किया है. उस समय के पुरातत्व में ग्रंथ आधारित पुरातत्व और प्रगौतिहसिक पुरातत्व शामिल थे. जो ग्रंथो पर आधारित नही थे. वर्तमान में पुरातत्व को विभिन्न विषयों में बाट दिया गया है. जैसे की पर्यावरण पुरातत्व, जैव पुरातत्व, भू पुरातत्व इत्यादि.
हमारे देश में भी पुरातत्व की शुरआत कुछ इसी तरह से हुई थी. भारत में पुरातत्व के साहसिक खोज की शुरुआत प्राचीन वस्तु की कलाओ के अध्ययन के साथ हुआ. शुरूआती दौर में उत्खनन विश्लेषण के कठोर तरीके के बिना प्राचीन स्थलों, स्मारकों और अवशेषों का अध्यन किया गया था. शुरुआत में ग्रंथ आधारित पुरातत्व का प्रभुत्व ज्यादा था.
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भारतीय उपमहाद्वीप के उत्तरी भाग का सर अलेक्जेंडर कनिघम ने विस्तार से सर्वेक्षण किया. उन्होंने चीनी तीर्थ यात्रयों जैसे जुआन जंग के द्वारा वर्णित शहरो और बस्तियों की पहचान करने की कोशिस की थी. और इस प्रकार वर्ष 1861 में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग की स्थापन की हुई थी.
भारतीय पुरातत्व विभाग की स्थापना कब हुई है
भारतीय पुरातत्व विभाग की स्थापना सन 1861 में सर अलेक्जेंडर कनिघम ने की थी. तथा सर अलेक्जेंडर कनिघम भारतीय पुरातत्व के पहले महानिदेशक भी बने थे. सन 1906 में इस संस्थान को एक स्थायी संस्थान के रूप में घोषित किया गया. भारतीय पुरातत्व विभाग को एएसआई (ASI) के नाम से भी जाना जाता है. जिसका पूरा नाम अर्कोलोजिकल सर्वे ऑफ़ इंडिया होता है.
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भारतीय पुरातत्व विभाग का उद्देश्य राष्ट्र के प्राचीन स्मारकों, पुरातत्वीय स्थलों और अवशेषों का रखरखाव करना है. इसका मुख्यालय जनपथ नई दिल्ली में है. यह विभाग पर्यटन एवं संस्कृति मंत्रालय के अंतर्गत संस्कृति के विभाग के कार्यलय के रूप में कार्य करता है.
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के वर्तमान महानिदेशक कौन है
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के वर्तमान महानिदेशक डॉ. राकेश तिवारी है.
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के अब तक के महानिदेशको की सुंची
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के स्थापना से लेकर वर्तमान तक महानिदेशको की सुंची निम्न अनुसार है:
कार्यकाल | महानिदेशक का नाम |
1871 – 1885 | सर अलेक्जेंडर कनिंघम |
1886 – 1889 | जेम्स बर्गस |
1902 – 1928 | जॉन मार्शल |
1928 – 1931 | हैरोल्ड ह्ग्रीव्स |
1931 – 1935 | राय बहादुर दया राम साहनी |
1935 – 1937 | जे. एफ. ब्लॅकिस्टन |
1937 – 1944 | राय बहादुर के.एन.दीक्षित |
1944 – 1948 | सर मॉर्टिमर व्हीलर |
1948 – 1950 | एन.पी.चक्रवर्ती |
1950 – 1953 | माधव स्वरूप वत्स |
1953 – 1968 | ए.घोष |
1968 – 1972 | बी.बी.लाल |
1972 | देशपांडे (पुरातत्वशास्त्री) |
— | बी.के.थापर (पुरातत्वशास्त्री) |
वर्तमान में | वी,विध्यातवी |
निष्कर्ष
इस आर्टिकल (bhartiya puratatva ka pita kise kaha jata hai | भारतीय पुरातत्व अधिनियम क्या है | भारतीय पुरातत्व का इतिहास , स्थापना, वर्तमान महानिदेशक ) को लिखने का हमारा उद्देश्य आपको भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के बारे में विस्तार से जानकारी देना है. भारतीय पुरातत्व का पिता सर अलेक्जेंडर कनिंघम को कहा जाता है. सर अलेक्जेंडर कनिघम को भारतीय इतिहास में शुरू से काफी रूचि थी. सन 1872 में सर अलेक्जेंडर कनिघम को भारतीय पुरातत्व का सर्वेक्षण बनाया गया.
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