भाषा के कितने रूप होते हैं – भाषा के कितने भेद होते हैं

आदमी की भाषा उसकी पहचान होती है. उसकी भाषा ही बताती है की आदमी कोनसे परिवेश से आया है. और आदमी का इतिहास क्या है. हमारे जीवन में भाषा का बहुत महत्त्व होता है. लेकिन आपको पता है की आखिरकार भाषा का अर्थ क्या होता है. और हिंदी व्याकरण के अनुसार भाषा के कितने भेद होते हैं. इस आर्टिकल (भाषा के कितने रूप होते हैं – भाषा के कितने भेद होते हैं – bhasha ke kitne roop hote hain – bhasha ke kitne bhed hote hain) में हम आपको भाषा किसे कहते हैं और भाषा के प्रकार बारे में विस्तार में बताएगे.

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भाषा का अर्थ क्या होता है?

भाषा एक प्रणाली है. जिसके माध्यम से मनुष्य अपनी भावनाए, गुस्सा, नाराजगी, प्यार, उपकार, मोह, आदेश, शिष्टाचार, आज्ञा, ख़ुशी और अनेक मनोदशा को किसी अन्य व्यक्ति से व्यक्त करता है. हम अपनी ख़ुशी और आनन्द व्यक्त करने के लिए हँसते है. खुद के विरुद्ध किसी बात के लिए गुस्सा व्यक्त करते है. अपने दृढ़ संकल्प को दिखाने के लिए मुट्ठी बंद करते है. वही किसी बात पर आश्चर्य होने पर अपनी भौहे ऊपर उठाते है. ये सभी भाषा का ही रूप है.

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भाषा सिर्फ शब्दों और वाक्यों तक ही सिमित नहीं है. जो हम मुह से बोल कर ही किसी को बता सकते है. भाषा इतनी विस्तृत है की हर वो वस्तु जिसकी सहायता से हम किसी अन्य व्यक्ति और खुद से बात करते है. और अपनी अनुभूति, अनुभव, मनोदशा, भावनाए, अहसास, उम्मीदे खुद को या किसी व्यक्ति को व्यक्त करते है. वह सब भाषा के अंतगर्त ही आता है.भाषा को लेकर आपको विभिन्न राय और परिभाषा मिलती है. बड़े बड़े दार्शनिको ने भाषा के सबंध में अनेक विचार रहे है. तथा सबने अपने तरीके से भाषा की व्याख्या की है. जिसमे से कुछ मुख्य व्याख्या इस प्रकार से है.

प्लेटो के अनुसार – प्लेटो ने भाषा और विचार पर व्याख्या करते हुए लिखा है की विचार आंतरिक आत्म मंथन है और जब ये शब्द बन कर होठो पर आते है. तो भाषा बन जाते है.

स्वीट के अनुसार – ध्वन्यात्मक शब्दों द्वारा विचारों को प्रकट करना ही भाषा है.

ब्लाक तथा ट्रेगर के अनुसार  भाषा यादृच्छिक भाष् प्रतिकों का तंत्र है जिसके द्वारा एक सामाजिक समूह सहयोग करता है.

स्त्रुत्वा – भाषा यादृच्छिक भाष् प्रतीकों का तंत्र है जिसके द्वारा एक सामाजिक समूह के सदस्य सहयोग एवं संपर्क करते हैं.

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भाषा के कितने रूप होते हैं नाम बताइए – भाषा के कितने भेद होते हैं

भाषा के दो रूप होते है. जो निम्न प्रकार से है:

  • मौखिक भाषा
  • लिखित भाषा

इसके अलावा भी एक अन्य भाषा का रूप है जिसे सांकेतिक भाषा कहा जाता है.

  • सांकेतिक भाषा

मौखिक भाषा

मौखिक भाषा में उन सभी स्थानीय भाषाओ को लिया जाता है. जिसके माध्यम से हम अपने मन और दिमाग की बात किसी अन्य व्यक्ति को बोल कर बताते है. भाषा के इस रूप में वक्ता अपनी बात बोल कर सामने वाले को समझाता है. जैसे क्रिकेट के मैदान में स्पीकर खेल की गतिविधियों को बोल कर बताता है. ये मौखिक भाषा का ही उदाहरण है.

जब हम किसी व्यक्ति से मोबाइल पर बात करते है. तो दो लोग हमेशा मोबाइल पर मौजूद होते है. पहला बोलने वाला और दूसरा सुनने वाला इस प्रकार के बातचीत में वक्ता अपनी बात मुह से शब्दों की सहायता से वाक्यों में उच्चारण कहता है. और सुनने वाला उसे सुन कर बात को समझता है. पुराने जमाने में लोग रेडियो पर समाचार सुना करते थे. यहा पर बोलने वाला एक ही होता था. लेकिन सुनने वाले लाखो में होते थे. ये भी मौखिक भाषा का ही एक रूप है.

मौखिक भाषा में बोल कर अपने विचार अन्य लोगो तक पहुचाते है. बोलने की इस प्रक्रिया को बोली कहा जाता है. मौखिक भाषा, भाषा का सबसे प्राचीन रूप है. क्यूंकि हमारे पूर्वज सबसे पहले बोलना ही सीखे थे.

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लिखित भाषा

जहा हम मौखिक भाषा में बोल कर अपने विचार सामने वाले को समझाते थे. वही यहा पर हम लिख कर अपने विचार अन्य लोगो तक पहुचाते है. लिखित भाषा का सबसे अच्छा उदाहरण जब हमारे के पास मोबाइल नहीं हुआ करते थे. तब हम दूर बैठे व्यक्ति से बात करने के लिए पत्र लिखते थे. यहा पर पत्र लिखने वाला व्यक्ति अपनी भावनाओ और मनोदशा को पत्र में लिखता था. और जिस व्यक्ति के नाम ये पत्र होता था. वो व्यक्ति पत्र पढ़ कर पत्र लिखने वाले की मनोदशा को समझता था. ये लिखित भाषा का ही रूप है.

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भाषा की इस प्रक्रिया में लिख कर बातो को अन्य लोगो तक पहुचाया जाता है. तथा लिखने की इस प्रक्रिया को लिपि कहते है. इसके उदाहरण अख़बार, मासिक सन्देश पत्र, किताबे, छपे हुए कागज इत्यादि है.

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सांकेतिक भाषा

ये वह भाषा है जिसमें इशारों में अपनी बात को किसी अन्य व्यक्ति को समझाया जाता है. सांकेतिक भाषा का उपयोग मुख बधिर बच्चे और लोग अपनी बात को समझाते में करते है. उन्हें सांकेतिक भाषा का प्रशिक्षण दिया जाता है. जिससे ये अपनी बात और मनोदशा को इशारों में समझा सकते है.

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इसका एक अन्य अच्छा उदाहरण हमारे शहरों के चौराहे पर खड़ा ट्रैफिक पुलिस वाला है. जो ट्रैफिक के विभिन्न निर्देशों को हाथों के इशारों से समझाता है.

निष्कर्ष

इस आर्टिकल (bhasha ke kitne roop hote hain – bhasha ke kitne bhed hote hain ) को लिखने का उद्देश्य आपको हिंदी व्याकरण के एक बहुत ही महत्वपूर्ण विषय भाषा के प्रकार बारे में विस्तार से बताना है. भाषा को लेकर विभिन्न विद्वानों की परिभाषा अलग हो सकती है. लेकिन भाषा का अर्थ समान ही है. इस आर्टिकल में हमने भाषा की परिभाषा के साथ ये बताया है की भाषा कितने प्रकार की होती है.

आपको ये आर्टिकल (bhasha kitne prakar ki hoti hai) कैसा लगा. ये हमे तभी पता चलेगा जब आप हमें निचे कमेंट करके बताएगे. इस ज्ञान को ज्यादा से ज्यादा लोगो तक फैलाए. और ज्यादा लोगो तक भाषा के सम्बन्धित ज्ञान को पहुचाए.

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