जैन धर्म के संस्थापक कौन थे | जैन धर्म का इतिहास, शिक्षाएं, पाँच महाव्रत और सिद्धांत

जैन धर्म के संस्थापक कौन थे | jain dharm ke sansthapak kaun the | जैन धर्म का इतिहास, शिक्षाएं, पाँच महाव्रत और सिद्धांत – भारतवर्ष प्राचीन काल से ऋषि मुनियो और संतो की भूमि रही है. यहां पर अनेक संतो ने जन्म लिया है जिन्होंने धर्म का मुख्य आधार जीव सुरक्षा और राष्ट्र प्रेम को बताया. ऐसा ही एक प्राचीन धर्म जैन धर्म है. लेकिन आपको पता ही जैन धर्म की संस्थापक कौन थे. तो इस आर्टिकल में हम आपको बताने वाले है जैन धर्म की स्थापन किसने की इसके साथ इस आर्टिकल में हम जैन धर्म से जुड़ी अन्य जानकारी प्राप्त करेंगे.

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जैन धर्म के संस्थापक कौन थे | jain dharm ke sansthapak kaun the

जैन धर्म मे अहिंसा को परम धर्म माना जाता है. वैसे तो जैन धर्म मे 24 तिर्थकर थें. जैन ग्रंथों के अनुसार इस काल के प्रथम तिर्थकर ॠषभदेव थें.  इन्हे जैन धर्म का संस्थापक माना जाता है. और भगवान महावीर स्वामी जैन धर्म के चौबीसवें और अंतिम तीर्थकर थे. भगवान महावीर स्वामी को वर्धमान के नाम से भी माना जाता है.

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जैन धर्म क्या है

जैन धर्म भारत के प्राचीनतम धर्मो में से एक है. जैन शब्द का शाब्दिक अर्थ “ जिन से प्रवर्तित धर्म” है. जो “जिन” के अनुयायी हो उन्हें “जैन” कहा जाता है. “ज़ि” धातु से “जिन” शब्द बना है. जिसका अर्थ होता है ‘ज़ि‘ मतलब जीतना और ‘जिन’ मतलब जीतने वाला. जिन्होंने अपने मन, वाणी और काया को जित लिया वो “जिन” होता है.

जैन धर्म की स्थापना का श्रेय ॠषभदेव को जाता है. और इस धर्म को विकसित और संगठित करने का श्रेय वर्धमान महावीर स्वामी को जाता है. जैन धर्म कि शिक्षाएं, सिद्धांत, महाव्रत, और जैन अनुयायो ने जैन धर्म को बहुत ही बल से सिंचा है. यह शिक्षाए, सिध्दांत और महाव्रत भगवान वर्धमान युगों पहले दे कर गए थे जिनका पालन करना प्रत्येक जैनी का कतर्व्य है.

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जैन धर्म का इतिहास

जैन धर्म की उत्पति मगध मे हुई थी. लेकिन यह धर्म समस्त भारत में कम ही समय में फैल गया था. जैन धर्म कि स्थापना का श्रेय ॠषभदेव को जाता है. जिन्हें आदिनाथ भी माना जाता  है. जो चक्रवर्ती  सम्राट भरत के पिता थे. और इस धर्म को विकसित और संगठित करने का श्रेय वर्धमान महावीर स्वामी को जाता है. ॠषभदेव का प्रतीक चिन्ह ‘सांड या बैल’ है और वर्धमान महावीर स्वामी जी का प्रतीक चिन्ह ‘सिंह’ को माना जाता है. महावीर स्वामी का जन्म 540 ईसा पुर्व में कुंडग्राम में हुआ था.

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जैन धर्म कितने वर्ष पुराना है

सिंधु घाटी सभ्यता से हमे जैन धर्म के अवशेष प्राप्त होते है. अर्थात जैन धर्म का अस्तित्व प्राचीन काल से है. जैन ग्रंथो के अनुसार जैन धर्म भगवान आदिनाथ के समय से अस्तित्व में आया था. क्योकि भगवान आदिनाथ के समय से ही तीर्थकर परम्परा की शुरुआत हुई थी.

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जैन धर्म की स्थापना कब हुई

जैन धर्म स्थापना बौध्द धर्म से भी प्राचीन है. जैन धर्म का जन्म वैदिक काल में ही हो गया था. भगवान  ऋषभदेव को जैन धर्म का संस्थापक माना जाता है. तथा उन्होंने जैन की उत्पति मगध में की थी. जैन धर्म मे कुल 24 तीर्थकर हुए जिसमें से महावीर स्वामी को 24 वे और अंतिम तीर्थकर थे. जिन्हें जैन धर्म को संगठित करने का श्रेय भगवान महावीर को जाता है. जिन्होने जैन धर्म को पुरे भारत में प्रचार किया था. जिनका जन्म 540 ईसा पुर्व में कुंडग्राम में जिल्ला वैशाली बिहार में हुआ था. इनका बचपन का नाम वर्धमान था. इनके के पिता नाम का नाम सिधार्थ और माता का नाम त्रिशला था.

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जैन धर्म की शिक्षाएं

भगवान महावीर स्वामी ने जैन धर्म में सहि विश्वास, ज्ञान और उचित आचरण पे जोर दियाँ है. विश्वास,उचित आचरण और ज्ञान से हि मनुष्य के जीवन को सही दिशा और उसके जीवन को आकार मिल सकता है. उनका मानना था की सभी आत्माए एक शक्ति है. उनके अस्तित्व में विश्वास था.

जों सबसे सर्वंशक्तिमान है. जैन धर्म की शिक्षाएं समानता,अहिंसा और आध्यात्मिक मुक्ति के विचारों पर बल देती है. महावीर ने युगो से  जो पढ़ाया और जो शिक्षाएं दि वो अभी के आधुनिक युग में भी बहुत महत्व रखती है.

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जैन धर्म के सिद्धांत क्या है

जैन धर्म क़े सिद्धांत कुछ इस प्रकार है:

  1.  अहिंसा
  2. सत्य
  3. अश्तेय
  4. त्याग
  5. ब्रह्मचर्य

जैन धर्म का प्रथम सिद्धांत अहिंसा है. अर्थात किसी भी जिव को कष्ट ना दियाँ जाए और घायल ना किया जाए. जैनी लोग पैड-पौधों तथा वायु मे प्राण मानते है. इसलिये वे नंगे पैर घुमते है. मुँह पर पट्टी बाँधते है. और पानी भी छान कर पीते है. ताकि उनसे कोई जिव हत्या ना हो और उन्हे कष्ट ना पहोचे.

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इनका दूसरा सिद्धांत घोर तपस्या और आत्म त्याग है. जैन धर्म के अनुयाय अपने शरीर को कष्ट देकर अपनी मन और इन्द्रियों पर नियंत्रण रखना जानते है. वें भूखे रहकर और घोर तपस्या को शुभ मानते है.

दूसरा सिद्धांत है सत्य बोलना. तीसरा सिद्धांत है अश्तेय मतलब चोरी नहीं करना. चौथा सिद्धांत है त्याग मतलब संपति का मालिका नहीं होना. पाचवां सिद्धांत है ब्रह्मचर्य मतलब सदाचारि जीवन जीना.

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जैन धर्म के पाँच महाव्रत कौन से है

भगवान महावीर स्वामी ने जैन अनुयायी को पाँच महाव्रत दिये. यह पांच महावत निम्नलिखित है:

  1.  सत्य:उन्होने कहा कि जीवन में सत्यता को मह्त्व देना जरूरी है. यही एक शब्द है. जो सबसे शक्तिशाली है. अच्छे इंसान को कभी सत्य को छोड़ना नहीं चाहिए. इसलिये हमेशा सच का अनुसरण करे.
  2. अहिंसा:उन्होंने कहा की अहिंसा परमो धर्म अर्थात किसी भी जिव को कष्ट ना दियाँ जाए और घायल ना किया जाए .
  3. अश्तेय:लालच नहीं करना चाहिए. लालच करना महापाप है. जीवन में जितना मिला है उसमें संतुष्ट रहना सीखें.
  4. ब्रह्मचर्य: उन्होंने कहा की ब्रह्मचर्य को पालना सबसे कठिन है. अगर सांसारिक मोह को छोड़ दीया जाए  तो मोक्ष कि प्राप्ति का मार्ग खुल जाता है. जब अपने शरीर सें ही मोह छूट जाएँ तो किसी अन्य क़े शरीर के भोग की भावना खत्म हो जाएगी.
  5. अपरिग्रह: मोह माया ही दुनियाँ से दुखी होने का कारण है. अपरिग्रह का मतलब है संचय ना करना.

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निष्कर्ष

इस आर्टिकल (जैन धर्म के संस्थापक कौन थे | jain dharm ke sansthapak kaun the | जैन धर्म का इतिहास, शिक्षाएं, पाँच महाव्रत और सिद्धांत) को लिखने का हमारा उद्देश्य आपको जैन धर्म के बारे में विस्तार से जानकारी देना है. जैन धर्म के संस्थापक का नाम भगवान  ॠषभदेव है. जैन धर्म भारत के प्राचीन धर्मो में से एक है तथा इस धर्म का आधार जिव रक्षा और सत्य है. इस आर्टिकल में हमने जैन धर्म की शिक्षाओं, सिद्धांत और महाव्रत का वर्णन किया है.

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