किस रस को राजरस कहा जाता है | kis ras ko rasraj kaha jata hai

किस रस को राजरस कहा जाता है | kis ras ko rasraj kaha jata hai  | शृंगार रस का उदाहरण और परिभाषा | संयोग श्रृंगार किसे कहते हैं | रस के प्रकार  – भारतीय साहित्य का इतिहास हजारो साल पुराना है. वैदिक धर्म के सबसे पुराने साहित्य वेद है. वेदों को विभिन्न विषयों के बारे में गहन अध्ययन के साथ विस्तार से लिखा गया है. किसी भी साहित्य को पढ़ने पर आपके मन में अनेक विचारो का संचालन होता है. यह विचार और भाव ही आपको साहित्य का आनंद पहुचाते है.

इन आनंद को ही हिंदी व्याकरण में रस कहा गया है. इस आर्टिकल में हम आपको रस के बारे में जानकरी देगे और बताएगे की किस रस को राजरस कहा जाता है. इसके साथ ही हम आपको इस आर्टिकल में रस के प्रकार के बारे में बताएगे.

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किस रस को राजरस कहा जाता है

शृंगार रस रस को राजरस कहा जाता है. इसका अन्य नाम रसपति भी है.

रस क्या होता है | रस क्या है

किसी काव्य को सुनने और पढ़ने में जिस आनंद की अनुभूति व्यक्ति को होती है. उसे ही रस कहा जाता है. प्राचीन काल में भारतीय साहित्य में रस की बड़ी भूमिका थी. और किसी भी साहित्य और काव्य का निर्माण रस के बिना नहीं होता था. रस के द्वारा ही लोगो को काव्य, कविता, गीत उपन्यास इत्यादि सुनने और देखने में आनंद मिलता था.

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रस के कितने अंग होते है

हिंदी व्याकरण के अनुसार रस के चार अवयव या अंग होते है. यह चार अंग निम्नलिखत है:

  1. विभाव
  2. अनुभाव
  3. संचारी भाव
  4. स्थायीभाव

विभाव

वह रस जो किसी व्यक्ति के अन्दर भावो को जगाता है. उसे ही विभाव रस कहा जाता है. विभाव रस को कारन रूप भी कहा जाता है. तथा जिस व्यक्ति और वस्तु के कारन विभाव रस का जन्म होता है उसे हेतु या निर्मित रस कहा जाता है.

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अनुभाव

भावो को प्रकट करने के लिए शरीर और अंगो का उपयोग करके जो विकार उत्पन्न किया जाता है. उसे अनुभाव कहा जाता है. वाणी और अंगो के अभिनय के द्वारा भाव और अर्थ को प्रकट किया जाता है. उसे ही अनुभाव कहा जाता है. अनुभाव की हिंदी व्याकरण में कोई निश्चित संख्या नहीं है. जो आठ अनुभाव सात्विक भावो में आते है. उन्हें सात्विकभाव कहा जाता है.

इन आठ सात्विकभाव के नाम निम्नलिखित है:

  1. प्रलय
  2. कम्प
  3. स्तम्भ
  4. स्वेद
  5. रोमांच
  6. स्वर भंग
  7. विवर्णता
  8. अश्रु

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संचारी भाव

वह भाव जो स्थायी भावो के साथ चलते है उसे ही संचारी भाव कहा जाता है. हिंदी व्याकरण में संचारी भावो की संख्या 33 होती है.

स्थायीभाव

किसी भी काव्य या रचना में स्थायीभाव शुरू से अंत तक बना रहता है. स्थायीभाव किसी भी साहित्य का प्रभावी भाव होता है. स्थायी भावो की संख्या 9 होती है. साहित्या का आनंद का आधार स्थायी भाव ही होता है.

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रस के प्रकार कितने होते है

हिंदी व्याकरण के अनुसार रस के कुल 11 प्रकार होते है. इसके नाम निम्नलिखित है:

  1. शृंगार रस
  2. भक्ति रस
  3. शांति रस
  4. हास्य रस
  5. वीर रस
  6. अद्दुत रस
  7. भक्ति रस
  8. भयानक रस
  9. वात्सल्य रस
  10. वीभत्स रस
  11. रौद्र रस
  12. करुण रस

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शृंगार रस

शृंगार रस को रसराज और रसपति भी कहा जाता है. शृंगार रस की पहचान रति नामक स्थायी भाव, विभाव, अनुभाव और संचारी भावो से है. जब नाटक में नायक और नायिका के मन में उपस्थित संस्कार रूप में स्थित प्रेम जब रस की अवस्था में पहुचता है और आस्वादन के योग्य हो जाता है. तो उसे शृंगार रस कहा जाता है.

शृंगार रस के उदाहरण

शृंगार रस के उदाहरण 1

दूलह श्रीरघुनाथ बने दुलही सिय सुन्दर मन्दिर माहीं।

गावति गीत सबै मिलि सुन्दरि बेद जुवा जुरि बिप्र पढ़ाहीं॥

राम को रूप निहारति जानकि कंकन के नग की परछाहीं।

यातें सबै सुधि भूलि गई कर टेकि रही, पल टारत नाहीं॥

शृंगार रस के उदाहरण 2

दूलह श्रीरघुनाथ बने दुलही सिय सुंदर मंदिर माही ।

गावति गीत सबै मिलि सुन्दरि बेद जुवा जुरि विप्र पढ़ाही।।

राम को रूप निहारित जानकि कंकन के नग की परछाही ।

यातें सबै भूलि गई कर टेकि रही, पल टारत नाहीं। – तुलसीदास।

शृंगार रस के उदाहरण 3

रे मन आज परीक्षा तेरी ! सब अपना सौभाग्य मानावें।

दरस परस नि:श्रेयस पावें। उध्दारक चाहें तो आवें। यही रहें यह चेरी ! – मैथिलीशरण गुप्त

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शृंगार रस कितने प्रकार का होता है

शृंगार रस के मुख्यरूप से दो प्रकार होते है. यह दो प्रकार निम्नलिखित है:

  1. संयोग श्रृंगार
  2. वियोग श्रृंगार (विप्रलंभ श्रृंगार)

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संयोग शृंगार रस | संयोग श्रृंगार किसे कहते हैं

संयोग काल में नायक और नायिका के बिच में उत्पन्न श्रृंगार रस को संयोग शृंगार रस कहा जाता है.

संयोग शृंगार का उदाहरण

बतरस लालच लाल की, मुरली धरि लुकाय।

सौंह करे, भौंहनि हँसै, दैन कहै, नटि जाय। -बिहारी लाल

वियोग शृंगार रस

एक दुसरे के प्रेम में लिप्त नायक और नायिका के मिलन के आभाव में उतपन्न रस वियोग शृंगार रस कहा जाता है.

वियोग शृंगार का उदाहरण

निसिदिन बरसत नयन हमारे,

सदा रहति पावस ऋतु हम पै

जब ते स्याम सिधारे। – सूरदास

निष्कर्ष

इस आर्टिकल (किस रस को राजरस कहा जाता है | kis ras ko rasraj kaha jata hai  | शृंगार रस का उदाहरण और परिभाषा | संयोग श्रृंगार किसे कहते हैं | रस के प्रकार ) को लिखने का हमारा उद्देश्य आपको रस और शृंगार रस के बारे में विस्तार से बताना है. शृंगार रस को ही रसराज कहा जाता है. किसी काव्य को सुनने और पढ़ने में जिस आनंद की अनुभूति व्यक्ति को होती है. उसे ही रस कहा जाता है. प्राचीन काल में भारतीय साहित्य में रस की बड़ी भूमिका थी. हिंदी व्याकरण के रस के कुल 11 प्रकार होते है.

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