नाटो की स्थापना कब हुई थी | भारत नाटो का सदस्य क्यों नहीं बन पाया

Nato ki sthapna kab hui thi | नाटो सगंठन क्या है | नाटो के बारे में जानकारी |क्या भारत नाटो का सदस्य है | nato full form in hindi – युद्ध किसी समस्या का हल नहीं होता है. लेकिन फिर भी इतिहास ने दो विश्व युद्धों को झेला है. जिससे पुरे विश्व में सभी देशों को आर्थिक और राजनैतिक रूप से बड़ी क्षति हुई है. करोड़ो की संख्या में बेकसूर लोगो को मारा गया है. कोई नहीं चाहता है विश्व युद्ध फिर से वापस हो विश्व में शांति बनाए रखने के लिए संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना की गई. जिसका कार्य दो देशों के बिच समन्वय बनाना है. लेकिन आपको नाटो के बारे में क्या पता है?

क्या आपको नाटो के बारे में प्रयाप्त जानकारी है. तो इस आर्टिकल में हम आपको नाटो के बारे में सम्पूर्ण जानकारी देने वाले है. नाटो की स्थापना से लेकर इसकी स्थापना के पीछे की कहानी को भी बताने वाले है. और यह भी जानेगे की भारत नाटो का सदस्य क्यों नहीं बन पाया.

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नाटो की स्थापना कब हुई थी | Nato ki sthapna kab hui thi

नाटो की स्थापना 4 अप्रैल 1949 में हुई थी.

नाटो में कितने सदस्य देश है?

नाटो में वर्तमान में कुल 30 सदस्य देश है. तथा नाटो का सैन्य खर्च पुरे विश्व के सैन्य खर्च का 70 प्रतिशत है. जिसमे अमेरिका अकेला बाकि सदस्यों की तुलना में अधिक खर्च उठाता है.

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नाटो सगंठन क्या है | नाटो के बारे में जानकारी

नाटो का पूरा नाम उत्तरी ऍटलाण्टिक संधि सगंठन है. यह एक सैन्य सगंठन है. जिसका मुख्यालय बेल्जियम में स्थित है. इस संगठन में 30 देशों की सेनाएं शामिल होती है. तथा सैन्य प्रक्षिशण को प्राप्त करने के लिए एक देश की सेना को दूसरे देश में भेजा जाता है. नाटो के सैनिको को कठिन प्रक्षिशण से गुजरना पड़ता है. सैन्य अभ्यास में सैनिकों को हर स्थिति से निपटने के सख्त आदेश दिए जाते है.

संगठन के शुरूआती दौर में यह किसी राजनैतिक दल के भांति ही प्रतीत होता था. लेकिन कोरियाई युद्ध में सदस्यों देशों को प्रेरणा दी. तथा दो अमेरिकी कमांडो के देख रेख में संगठन ने एक एकीकृत सेना का रूप ले लिया.

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लॉर्ड इश्मे पहले नाटो के महासचिव बने थे. जिन्होंने संगठन के उद्देश्यों पर टिप्पणी करते हुए कहा था “रूसियो को बाहर रखो, अमेरिको को अंदर रखा जाए और जर्मनी को नीचे रखा जाए”. उनकी यह टिप्पणी पूरे विश्व में सबसे बड़ी चर्चा का विषय बनी रही थी. यूरोपियों और अमेरिका के बीच रिश्तो की तरह ही नाटो सगंठन की ताकत भी घटती बढती रही है.

द्वितीय विश्व युद्ध की समाप्ति के पश्चात पुरे विश्व में अमेरिका और सोवियत संघ दो महाशक्ति बन कर उभरे थे. यूरोपीय देशों ने अपनी रक्षा के लिए एक संधि पर हस्ताक्षर किये. जिसे बुसेल्स संधि कहा जाता है. इस संधि में फ्रांस, बेल्जियम, नीदरलैंड और ब्रिटेन देश शामिल थे. इस संधि के अनुसार अगर इन में से किसी भी देश पर हमला होता है. तो एक देश दुसरे देश को सैन्य सुरक्षा देगा.

इसके पश्चात् सोवियत संघ के प्रभाव को ख़त्म करने के लिए अमेरिका सैनिक गुटबंदी करने के लिए सामने आया. अमेरिका ने संयुक्त राष्ट्र के अनुच्छेद 15 के अनुसार उत्तर अटलांटिक संधि की पेशकश की. जिस पर अमेरिका सहित कुल 12 देशों ने सन 1949 में हस्ताक्षर किया. इन 12 देशों में फ्रांस, लक्जमर्ग, नार्वे,  बेल्जियम, ब्रिटेन, आइसलैण्ड, नीदरलैंड, कनाडा, पुर्तगाल, डेनमार्क,  इटली, और संयुक्त राज्य अमेरिका शामिल थे.

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इसके पश्चात् शीत युद्ध के पहले स्पेन, जर्मनी, टर्की और यूनान ने सगंठन में सदस्यता ली. और शीत युद्ध की समाप्ति के बाद हंगरी, पोलैंड, और चेक गणराज्य इसमें सम्मिलित हुए. सन 2004 में सात अन्य देशों ने नाटो में सदस्यता ली. इस प्रकार वर्त्तमान में नाटो में विश्व के कुल 30 देश सम्मिलित है. यह देश एक दूसरी देश को सैन्य सहायता प्रदान करनेके लिए वचनबंद है.

नाटो की जरूरत क्यों पड़ी?

द्वितीय युद्ध की समाप्ति के पश्चात् पुरे विश्व में अमेरिका और सोवियत संघ सिर्फ दो ही महाशक्ति बच गई थी. द्वितीय युद्ध के दौरान हारे हुए देशों की आर्थिक स्थित बिल्कुल ख़राब हो गई थी. तथा यूरोपियो देशों के नागरिको की जीवन शैली भी काफ़ी निचे गिर गई थी. मौके को देखते हुए सोवियत संघ तुर्की और ग्रीस पर अपना प्रभाव बढ़ाना चाहता था. जिससे काला सागर का नियन्त्र सोवियत संघ के हाथो में आ जाए. और वह विश्व में अपने साम्यवादी विचारधारा और विश्व व्यापार पर आसानी से नियंत्रण प्राप्त कर सके.

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सोवियत संघ ग्रीस पर विजय प्राप्त करके भूमध्य सागर के समीप होने वाले अंतराष्ट्रीय व्यापार को प्रभावित करना चाहता था. अमेरिका सोवियत संघ की इस विस्तार वादी निति को समझ चूका था. इसी समय अमेरिका को अपना नया राष्ट्रपति हैरी एस ट्रूमैन प्राप्त हुआ था इन्होने ने ही ट्रूमैन के सिद्धांत को दुनिया के सामने रखा. जिसके आधार पर ही नाटो की स्थापना हुई थी.

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ट्रूमैन का सिद्धांत क्या है?

सोवियत संघ की विस्तारवादी निति को रोकने के लिए अमेरिका ने दुनिया के सामने प्रस्ताव रखा. जिसे ट्रूमैन का सिद्धांत कहा जाता है. इस सिद्धांत के अनुसार साम्यवादी से खतरा होने वाले देशों की रक्षा करने के लिए एक ऐसी सेना का निर्माण करना है. जिसके सदस्य देश किसी एक सदस्य देश पर खतरा होने पर एक दूसरी की सहायता करे.

इस संगठन में वह देश शामिल हो सकता था. जो अपने लोकतंत्र को बचाना चाहता हो और साम्यवादी के प्रभाव से भयभीत हो. एक अन्य मार्शल योजना में ग्रीस और तुर्की की सहायता के लिए 400 मिलियन डॉलर दिए. और उन्हें भी नाटो में शामिल कर दिया गया. इसके चलते अमेरिका और सोवियत संघ के बिच काफ़ी सालो तक शीत युद्ध भी चलता रहा.

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क्या भारत नाटो का सदस्य है और अगर नहीं है तो भारत नाटो का सदस्य क्यों नहीं बना?

विश्व युद्द के पश्चात् सिर्फ दो ही महाशक्ति दुनिया के सामने आई. अगर भारत इन में से किसी भी महाशक्ति को चुनता तो यह गुटनिरपेक्षा होती. और भारत देश हमेशा से गुटनिरपेक्षा से दूर रहा है. हमारे लिए पूरा विश्व एक परिवार है. इसलिए भारत कभी भी नाटो का सदस्य नहीं बना.

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निष्कर्ष

इस आर्टिकल (Nato ki sthapna kab hui thi | नाटो सगंठन क्या है | नाटो के बारे में जानकारी |क्या भारत नाटो का सदस्य है | nato full form in hindi ) को लिखने का हमारा उद्देश्य आपको नाटो के बारे में प्रयाप्त जानकारी देना है. नाटो का पूरा नाम उत्तरी ऍटलाण्टिक संधि सगंठन है. यह एक सैन्य सगंठन है. जिसकी स्थापना 4 अप्रैल 1949 में हुई थी. इसका मुख्यालय बेल्जियम में स्थित है. इस संगठन में 30 देशों की सेनाएं शामिल होती है. ट्रूमैन के सिद्धांत के आधार पर नाटो की स्थापना हुई थी.

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