पारस पत्थर क्या हैं | पारस पत्थर की पहचान क्या है

पारस पत्थर क्या हैं | पारस पत्थर की पहचान क्या है | पारस पत्थर बनाने की विधि |Paras pathar kya hai हमारी दुनिया अनेक रहस्यों से भरी पड़ी हैं. दुनिया में कही ऐसी घटना हुई हैं जिसकी वजह आज तक कोई खोज नहीं पाया हैं. संसार में कही सारी ऐसी वस्तुए हैं जिनका जिक्र समय-समय पर मिलता हैं. लेकिन उनकी उपस्थिति हमेशा रहस्य रही हैं. ऐसी ही एक वस्तु पारस पत्थर हैं. पारस पत्थर का जिक्र संचार के शुरुआत से मिलता हैं. लेकिन वास्तव में पारस पत्थर कहां मिलता है. इसकी पहचान क्या हैं. यह सब हम इस आर्टिकल में पढेगे. इस आर्टिकल में आप जानेगे की पारस पत्थर क्या हैं.

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पारस पत्थर क्या हैं | पारस पत्थर की पहचान क्या है

पारस पत्थर का संस्कृत नाम स्पर्श मणि हैं. और अंग्रेजी नाम फिलोसोफर स्टोन (Philosopher’s stone) हैं. पारस पत्थर एक पहेली हैं. जिसे आज तक कोई नहीं सुलझा पाया हैं. अगर किसी ने सुलझाया भी हैं. तो वह इस दुनिया में नहीं हैं. या अनजान हैं. पारस पत्थर की एटॉमिक सरचना इस प्रकार की हैं जिससे अगर इसे लोहे को स्पर्श कराए तो लोहा सोना बन जाता हैं. बहुमूल्य पारस पत्थर का रंग काला होता हैं. जिसमे से सुगन्धित खुशबु आती हैं.

ऐसा माना जाता हैं की 13 वी सदी के वैज्ञानिक और दार्शनिक अल्बर्टस मानुस (Albertus Manu) पारस पत्थर की खोज की थी.

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पौराणिक कथाओ में उल्लेख

हिन्दुधर्म के ग्रन्थ महाभारत के किरदारों में से एक मुख्य किरदार अश्वधामा था. जिन्हें हमेशा अमर रहने का वरदान मिला था. ऐसा माना जाता हैं की अश्वधामा के पास एक ऐसी मणि थी. जिससे वह इतना बलशाली और प्रभावशाली बना था. ज्योतिषी में अनेक प्रकार की मणियो का जिक्र होता हैं. ज्योतिष में व्यक्ति के जन्म के नक्षत्र और ग्रहो की स्थिति के अनुसार मणि धारण करने की सलाह दी जाती हैं. पारस पत्थर भी एक मणि ही हैं.

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पारस पत्थर कहां मिलता है | पारस पत्थर कहा मिल सकता हैं

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प्राचीन भारत में अनेक ऋषि मुनि हुए. जिन्होंने संसार में अनेक रचनाए की इस ऋषि मुनि में एक रसायनकार नागार्जुन भी हुए जिन्होंने पारे को सोने में बदलने की तरकीब निकाली थी. पारस मणि जहा कही भी हैं. पारस मणि सिर्फ रसायन विज्ञान का ही अविष्कार हैं. माना जाता हैं की हिमालय के घने जंगलो में पारस मणि की खोज की जा सकती हैं. लेकिन पारस मणि को पहचानना किसी के बस की बात नहीं हैं.

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पिछले दस साल के अखबारों की खबरों पर हमारे शोध से हमे ज्ञात होता हैं की मध्य प्रदेश के भोपाल से करीबन 50 किलोमीटर दुरी पर राजसेन किले में पारस पत्थर हैं. रायसेन का किला पहाड़ी चोटियों पर स्थित हैं. यह किला बलुआ पत्थर से बना हैं. रायसेन का किला प्राचीन वास्तुकला और गुणवत्ता का उत्कर्ष प्रमाण हैं. माना जाता हैं की इस किले में पारस पत्थर हैं. जिसकी रखवाली जिन्न करते हैं.

पारस पत्थर बनाने की विधि

प्राचीन भारत में अनेक ऋषि मुनि हुए जिन्होंने रसायन विज्ञान में अनेक शोध और प्रयोग किये. यह रसायनशास्त्री दो या दो से अधिक धातुओ को पिघला कर आपस में मिलाते थे. और एक अन्य नई धातु बनाने का प्रयत्न करते थे. इसी कड़ी में इन्होने सोने को भी अन्य धातु को मिलाकर बनाने के प्रयत्न किये थे.

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प्राचीन भारत के ग्रंथो में सोना बनाने की रसायनिक विधिया दी गई हैं. रसायनिक विधि से सोना बनाने के लिए आठ महारसो का इस्तेमाल होता हैं. सोना बनाने के लिए पीले रंग के गंधक को पलाश की गोंद से शोधित किया जाता था. फिर चाँदी की धातु को पिघला कर गंधक के साथ तीन बार आग के अन्दर पकाया जाता था. इस प्रकार से कृत्रिम सोने को बनाया जाता था.

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निष्कर्ष

इस आर्टिकल (पारस पत्थर की पहचान क्या है | पारस पत्थर बनाने की विधि |Paras pathar kya hai ) में हमने जाना हैं पारस पत्थर क्या हैं. तथा इसकी पहचान क्या हैं. पारस पत्थर एक बहुमूल्य काले रंग का सुगन्धित पत्थर हैं. पारस पत्थर की एटॉमिक सरचना इस प्रकार की हैं जिससे अगर इसे लोहे को स्पर्श कराए तो लोहा सोना बन जाता हैं. पारस पत्थर की खोज अभी भी जारी हैं. लेकिन इसकी वास्विकता का प्रमाण अभी तक किसी के पास नहीं हैं. धन्यवाद.

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