प्रेम क्या है गीता के अनुसार – जाने क्या लिखा है गीता में – श्रीमदभागवत गीता एक ऐसा ग्रंथ माना जाता हैं. जो व्यक्ति को जीवन जीने का सही ढंग सिखाती हैं. अगर कोई व्यक्ति गीता में लिखे उपदेश अपने जीवन में उतार लेता हैं. तो वह आसान तरीके से अपने जीवन को व्यतीत कर सकता हैं. गीता एक ऐसा ग्रंथ है. जिसमें प्रेम, कर्म और धर्म के बारे में अच्छे से समझाया गया हैं.
अगर इन तीनो को जीवन में शामिल कर दिया जाए. तो व्यक्ति गलत रास्ते पर जाने से बच जाता हैं. गीता में प्रेम को लेकर की काफी कुछ बताया गया हैं. जिसके बारे में आज हम इस आर्टिकल के माध्यम से चर्चा करने वाले हैं. तो इस महत्वपूर्ण जानकारी को पाने के लिए हमारा यह आर्टिकल अंत तक जरुर पढ़े.
दोस्तों आज हम आपको इस आर्टिकल के माध्यम से बताने वाले है की प्रेम क्या है गीता के अनुसार. इसके अलावा इस टॉपिक से जुडी अन्य और भी जानकारी प्रदान करने वाले हैं.
तो आइये हम आपको इस बारे में संपूर्ण जानकारी प्रदान करते हैं.
प्रेम क्या है गीता के अनुसार
गीता के अनुसार प्रेम क्या होता हैं. इसके बारे में हमने नीचे संपूर्ण जानकारी प्रदान की है.
- अगर आप किसी से प्रेम करते हैं. तो उस व्यक्ति पर कभी भी हंसना नहीं चाहिए. अगर आप किसी व्यक्ति की परिस्थिति पर हंसते तो यह प्रेम नही माना जाता. आप जिससे प्रेम करते हैं. उसकी परेशानी को समझते हैं. आप जिससे प्रेम करते हैं. उसकी परेशानी और उस व्यक्ति को समझने की कोशिश करनी चाहिए.
- अगर आप किसी व्यक्ति को प्रेम करते हैं. तो उस व्यक्ति पर कभी भी गुस्सा नहीं करना चाहिए. गीता के अनुसार अगर आप किसी व्यक्ति पर गुस्सा करते हैं. तो आपका उसके प्रति ऐसा भाव प्रेम नहीं कहलाता हैं. अगर आप किसी से प्रेम करते हैं. तो आपको उस व्यक्ति पर गुस्सा नहीं करना चाहिए.
- अगर किसी व्यक्ति के जीवन में संतुष्टि नहीं हैं. तो उसके अंदर भी प्रेम की कमी हैं. ऐसा मान लेना चाहिए. जो व्यक्ति प्रेम से जुड़ा हुआ हैं. ऐसे व्यक्ति को अगर जीवन में थोडा सा भी मिलता है. तो वह अपने जीवन से संतुष्ट रहता हैं. लेकिन जिसके अंदर प्रेम भाव नहीं होता हैं. ऐसे व्यक्ति को जीवन में कितना भी सुख मिल जाए. वह संतुष्ट नहीं हो सकता हैं. इसलिए अपने जीवन में संतुष्टि रखने के लिए अपने अंदर प्रेम रखना जरूरी हैं.
- गीता के अनुसार ऐसा माना जाता है की जिसके जीवन में प्रेम होता हैं. उसके जीवन में शांति होती हैं. इसलिए अपने जीवन में शांति बनाए रखने के लिए अपने अंदर प्रेम भाव रखना जरूरी हैं.
- गीता में श्री कृष्ण ने बताया है की दुर्योधन के जीवन में प्रेम की कमी थी. इसलिए उसने युद्ध में श्री कृष्ण को मांगने की बजाय सेना को मांगा था. उसके जीवन में इर्ष्या, अहंकार था. इसलिए उसके जीवन में प्रेम की कमी थी. अगर आप भी अपने जीवन से इर्ष्या और अहंकार रखते हैं. तो अपने जीवन से उसे निकाल दीजिए. ऐसा करने वाला व्यक्ति ही प्रेम भाव वाला व्यक्ति माना जाता हैं.
- गीता के अनुसार जो व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति से नि:स्वार्थ भावना से प्रेम करता हैं. तो ऐसा प्रेम सच्चा प्रेम माना जाता हैं. जो लोग स्वार्थ की भावना से किसी व्यक्ति को प्रेम करती हैं. तो गीता के अनुसार ऐसा प्रेम सच्चा प्रेम नही होता हैं. अगर आपमें किसी के भी प्रति प्रेम हैं. तो आपमें स्वार्थ की भावना नही होनी चाहिए.
- अगर आप किसी व्यक्ति से कुछ पाने की चाह में प्रेम करते हैं. तो यह भी प्रेम नहीं कहलाता हैं. अगर कुछ पाए बीना ही किसी व्यक्ति से प्रेम करते हैं. तो ऐसा प्रेम गीता के अनुसार सच्चा प्रेम माना जाता हैं.
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निष्कर्ष
दोस्तों आज हमने आपको इस आर्टिकल के माध्यम से बताया है की प्रेम क्या है गीता के अनुसार. इसके अलावा इस टॉपिक से जुडी अन्य और भी जानकारी प्रदान की हैं.
हम उम्मीद करते है की आज का हमारा यह आर्टिकल आपके लिए उपयोगी साबित हुआ होगा. अगर उपयोगी साबित हुआ हैं. तो आगे जरुर शेयर करे. ताकि अन्य लोगो तक भी यह महत्वपूर्ण जानकारी पहुंच सके.
दोस्तों हम आशा करते है की आपको हमारा यह प्रेम क्या है गीता के अनुसार – जाने क्या लिखा है गीता में आर्टिकल अच्छा लगा होगा. धन्यवाद
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