रौलट एक्ट कब पारित हुआ था | इतिहास का सबसे क्रूर कानून

रौलट एक्ट कब पारित हुआ था | rowlatt act kab parit hua tha | रौलट एक्ट क्या था | रौलट एक्ट के विरुद्ध सत्याग्रह – भारत की स्वंत्रता की लड़ाई में अनेक देशवासियों और नागरिको ने अपने प्राणों की बाजी लगाई थी. हमारे लिए हमारी आजादी अमूल्य है. इस लड़ाई की शुरुआत छोटी मोटी राष्ट्रिय आन्दोलन और क्रन्तिकारी घटनाओ के साथ हुई थी. लेकिन आपको पता है ब्रिटिश सरकार ने इन छोटे मोटे राष्ट्रिय आन्दोलन को क्रूरता से कुचले के लिए इतिहास का सबसे क्रूर रौलट एक्ट की स्थापना की थी. तो इस आर्टिकल में हम जानेगे की रौलट एक्ट क्या है. तथा इसे कब पारित किया गया था.

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रौलट एक्ट कब पारित हुआ था | rowlatt act kab parit hua tha

रौलट एक्ट को 18 मार्च 1919 को भारतीय स्वंत्रता के लिए उभर रहे आन्दोलनो को कुचलने के लिए पारित किया गया था.

रौलट एक्ट क्या था?

रौलट एक्ट को काला कानून नाम से भी जाना जाता है. तथा इस कानून को पारित करने का उद्देश्य सिर्फ भारतीय स्वंत्रता के लिए उठ रही आवाज को दबाना और राष्ट्रिय आन्दोलन को कुचलना था. इस कानून को सर सिडनी रौलट की अध्यक्षता में सोदिशन समिति की सिफारिसो पर बनाया गया. था तथा इसका कानून की पुस्तक में नाम अराजक और क्रन्तिकारी  अपराध अधिनियम, 1919 था.

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रौलट एक्ट को काला कानून क्यों कहा गया है?

इस कानून को बनाने का उद्देश्य भारतीयों की आजादी को बलपूर्वक छिनना था. जिससे भारत में लोग स्वंत्रता के आन्दोलन करने से डरे और सरकार किसी भी आन्दोलनकारी पर आसानी से सख्त करवाई कर सके. इसलिए भारतीयों ने इस कानून को काला कानून नाम दिया था.

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रौलट एक्ट के महत्वपूर्ण बिंदु क्या थे?

रौलट एक्ट के महत्वपूर्ण बिंदु निम्नलिखित थे:

  • इस कानून के तहत ब्रिटिश सरकार किसी भी भारतीय को बिना मुकदमा चलाए जेल में डाल सकती थी. तथा इस कानून की तहत मुकदमा करने वाले व्यक्ति का नाम जानने का अधिकार भी समाप्त कर दिया था.
  • राजद्रोह के मुकदमो की सुनवाई के लिए एक विशेष अलग न्यायलय की स्थापना की जाएगी.
  • अगर किसी मुकदमे पर फैसला आता है. उनके बाद किसी उच्च न्यायलय में अपील करना अधिकार समाप्त कर दिया गया.
  • राजद्रोह से जुड़े मामलो में जजों को बिना जूरी की सलाह और बिना सुनवाई के स्वन्त्रत रूप से फैसला सुनाने का अधिकार था.
  • इस कानून के तहत सरकार को किसी भी प्रेस और अख़बार पत्र से बलपूर्वक अधिकार छिनने का हक़ था. तथा इस कानून के अनुसार किसी भी व्यक्ति को कभी भी देश से निष्कासित किया जा सकता था.

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रौलट एक्ट का इतिहास क्या है

गुलाम भारत के निवासी विदेशी हुकूमत के अत्याचार से परेशान होने लगे थे. तथा अब यह आन्दोलन के रास्ते को अपना रहे थे. लेकिन सरकार इन देशभक्ति आंदोलनकारियो और क्रांतिकारियों की आवाज को दबाना चाहती थी. इस लिए सरकार ने छोटे छोटे आन्दोलन की समीक्षा के लिए 1917 में न्यायधीश सिडनी रौलट की अध्यक्षता में एक समिति की स्थापना की थी.

इस समिति ने 4 महीनो तक शोध किया और छोटे छोटे आन्दोलन को बड़ा चढ़ा कर पेश किया. इस समिति ने  क्रांतिकारियों को उग्रवादियों के रूप में पेश किया. और कमिटी ने फ़रवरी 1919 में क्रांतिकारियों को कुचलने के लिए दो विधेयक केन्द्रीय विधान परिषद् में पेश किये. जिसमे से एक विधेयक भारतीय सदस्यों के विरोध के बावजूद भी पास कर दिया गया था.

आखिरकर 18 मार्च 1919 को क्रांतिकारियों और भारतीय स्वत्रता के आन्दोलन को कुचले के लिए क्रूर रौलट एक्ट की स्थापना की गई.

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रौलट एक्ट के विरुद्ध सत्याग्रह

रौलट एक्ट का विरुद्ध पुरे देश किया गया. उस समय मोहम्मद अली जिन्ना और मदन मोहन मालवीय ने इसके विरोध में केन्द्रीय व्यवस्थापिका के सदस्य से त्यागपत्र दे दिया. भारतीयों ने इस  क्रूर कानून को काला कानून नाम दिया. तथा पुरे देश में इस कानून के विरोध को जताने के जुलुस , हड़ताल और प्रदर्शन किये गए.

महत्मा गाँधी उस समय तक देश की राजनीती का एक बड़ा चहरा बन चुके थे. उन्होंने इस कानून के विरोध में अपने सत्याग्रह रूपी हथियार का उपयोग किया. तथा देश के विभिन्न हिस्सों जैसे चंपारण, खेड़ा और अहमदाबाद में सत्याग्रह किया.

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महात्मा गाँधी ने पुरे देश में व्यापक हड़ताल का ऐलान किया. तथा रौलत एक्ट के विरोध में महात्मा गाँधी द्वारा देश व्यापी आन्दोलन चलाया गया. यह महात्मा गाँधी द्वारा चलाया गया प्रथम राष्ट्रिय आन्दोलन था. 24 फ़रवरी 1919 के दिन बापू ने मुंबई में सत्याग्रह संभा बैठक की तथा यह निश्चय किया की रौलट एक्ट का विरोध पुरे देश में अहिंसा और सत्य मार्ग पर चल कर किया जाएगा.

गाँधी के इस सत्य और अहिंसा के मार्ग का कुछ सुधारवादी नेताओ के द्वारा विरोध भी किया गया था. जिसमे प्रमुख नाम तेज बहादुर सप्रू, सुरेन्द्र नाथ बनर्जी, सर डी इ वादी, श्री निवास शास्त्री इत्यदि थे. लेकिन गाँधी के अहिंसा और सत्य के मार्ग को पुरे देश में व्यापक रूप में समर्थन मिला था.

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इस आन्दोलन में दिल्ली तथा अन्य स्थानों पर हिंसा भी हुई. जिसके चलते महात्मा गाँधी ने अपना सत्याग्रह आन्दोलन वापस ले लिया और कहा की “भारतीय इस समय अहिंसा के मार्ग पर दृढ रहने के तैयार नहीं है.”

इसके पश्चात् 13 अप्रैल 1919 के दिन सैफुद्दीन किचलू और सत्यपाल की गिरफ्तारी के विरोध में अमृतसर के स्वर्ण मंदिर के पास जलियावाला बाग में लोगो की भीड़ जुटना चालू हुई. जहा जगरल डायर ने अपने फौजी कमांडो को भीड़ पर अन्धाधुन गोली चलाने का आदेश दिया. जिसमे हमारो बेकसूर लोगो को मारा गया. इतिहास का सबसे खुनी खेल खेला गया था. यह घटना ब्रिटिश हुकुमत की सबसे काले अध्यायों में गिनी जाती है. जिसे जलियावाला बांग हत्याकाण्ड के नाम से जाना जाता है.

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निष्कर्ष

इस आर्टिकल (रौलट एक्ट कब पारित हुआ था | rowlatt act kab parit hua tha | रौलट एक्ट क्या था | रौलट एक्ट के विरुद्ध सत्याग्रह) को लिखने का हमारा उद्देश्य आपको रौलट एक्ट के बारे में विस्तार से जानकारी देना है रौलट एक्ट को 18 मार्च 1919 को भारतीय स्वंत्रता के लिए उभर रहे आन्दोलनो को कुचलने के लिए पारित किया गया था. रौलट एक्ट को काला कानून नाम से भी जाना जाता है. तथा इस कानून को पारित करने का उद्देश्य सिर्फ भारतीय स्वंत्रता के लिए उठ रही आवाज को दबाना और राष्ट्रिय आन्दोलन को कुचलना था.

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