बिहार में स्वराज दल का गठन किसने किया | स्वराज पार्टी के अध्यक्ष कौन थे

बिहार में स्वराज दल का गठन किसने किया | bihar mein swaraj dal ka gathan kisne kiya |   स्वराज पार्टी के अध्यक्ष कौन थे | स्वराज पार्टी क्या है | स्वराज पार्टी के महत्वपूर्ण कार्य और उपलब्धिया – भारत के स्वंत्रता का संग्राम दशको तक चला था. अंग्रेज हमेशा अपनी नीतियों के कारन भारतीयों का शोषण करते थे. लेकिन कुछ क्रांतिकारियों और देश भक्तो ने अंग्रेजो की नीतियों का खुलकर विरोध किया. इन लोगो और इनकी पार्टीयो ने सरकार के अंदर जगह बना कर सरकार की गलत नीतियों का जमकर विरोध किया. इसमें एक प्रमुख साल स्वराज दल था. इस आर्टिकल में हम जानेगे की स्वराज दल की स्थापना कब और किसने की थी. साथ ही इसके पतन के भी कारन जानेगे.

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बिहार में स्वराज दल का गठन किसने किया | स्वराज पार्टी क्या है | bihar mein swaraj dal ka gathan kisne kiya

स्वराज दल भारतीय स्वंत्रता की लड़ाई के दौरान बना एक प्रमुख राजनैतिक दल है. जिसकी स्थापना 1 जनवरी 1923 को भारतीय स्वंत्रता के दो प्रमुख नेता देशबंधु चित्तरंजन दास और मोतीलाल नेहरु ने की थी. स्वराज शब्द का शाब्दिक अर्थ अपना राज्य या देश होता है. यह दल भारतीयों का शासन और राजनीती में स्वंत्रता के लिए कार्य करता था.

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स्वराज पार्टी के अध्यक्ष कौन थे?

स्वराज पार्टी के अध्यक्ष चित्तरंजन दास थे.

स्वराज पार्टी का गठन कब हुआ?

स्वराज दल का गठन 1 जनवरी 1923 में हुआ था.

स्वराज पार्टी का जन्म क्यों और कैसे हुआ था | स्वराज पार्टी का इतिहास

जब महत्मा गाँधी ने 5 फरवरी 1922 को चौरी चौरा कांड होने के कारन असहयोग आन्दोलन वापस ले लिया. तो कुछ नेता बापू के इस कदम से नाखुश हुए. उनके अनुसार असहयोग आन्दोलन से अंग्रेजी हुकुमत की कमर टूट रही थी. अगर इसे जारी रखा जाता तो आन्दोलन में बहुत बड़ी सफलता मिल सकती थी.

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इसके पश्चात् दिसम्बर 1922 में चित्तरंजन दास की अध्यक्षता में बिहार के गया में कांग्रेस का राष्ट्रिय अधिवेशन बुलाया गया. जिसमे विधान परिषद् में प्रवेश नहीं करने का निश्चय किया गया. चित्तरंजन दास इस निर्णय के विरोध में थे और उन्होंने त्याग पत्र दे दिया.

इस से पहले जब कांग्रेस ने विधान परिषदों के चुनाव में भाग नहीं लेने का निश्चय किया. तो अब कांग्रेस के सामने सबसे बड़ा प्रश्न 1919 के एक्ट द्वारा घोषित चुनाव में भाग लेना या भाग नही लेना था.

चित्तरंजन दास, मोतिलाल नेहरु और विट्ठल भाई चुनाव में भाग लेने के पक्ष में थे. इसलिए यह परिवर्तनवादी के नाम से जाने गए. और राजेन्द्र प्रसाद, राजगोपालाचारी, डॉक्टर अंसारी, सरदार वल्लभ भाई पटेल विधान परिषद् के चुनाव में भाग नहीं लेने के पक्ष में थे. उन्होंने चुनाव का बहिष्कार करने का निर्णय लिया इसलिए यह लोग अपरिवर्तनवादी कहलाए.

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जिससे इसके दिसम्बर 1922 में चित्तरंजन दास की अध्यक्षता में बिहार के गया में कांग्रेस का राष्ट्रिय अधिवेशन बुलाया गया. जिसमे विधान परिषद् में प्रवेश नहीं करने का निश्चय किया गया. इस पर चित्तरंजन दास ने तुरंत इस्तीफा दे दिया.

इसके बाद विधान परिषद में भाग लेने के निर्णय करने वाले समर्थको का मार्च 1923 में इलाहबाद में एक सम्मेलन बुलाया गया. जिसमे एक नई स्वराज पार्टी की स्थापना की गई.

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नई पार्टी के अध्यक्ष के रूप में चित्तरंजन दास को चुना गया. तथा मोतीलाल नेहरु को सचिव बनाया गया था. यह दल विधान परिषदों में भाग लेने में प्रवेश करके सरकार की गलत नीतियों की आलोचना और सरकार के दोषों को उजागर करना चाहता था.

आख़िरकार परिवर्तनवादियों की कतुरता को भुलाकर तथा आपसी सहयोग को बढ़ाने के लिए कांग्रेस ने सितम्बर में सन 1923 में मौलाना अब्दुल कलाम की अध्यक्षता में दिल्ली में एक अधिवेशन बुलाया. जिसमे स्वराज दल को विधान संभा चुनाव लड़ने की अनुमति दे दी गई थी.

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स्वराज दल ने सन 1923 के केन्द्रीय और प्रांतीय परिषदों के चुनाव में भारी सफलता प्राप्त की. इस पार्टी को मध्य प्रान्त और बंगाल में पूर्ण बहुमत प्राप्त हुआ. मुंबई और उत्तर प्रदेश में भी भारी सफलता प्राप्त हुई. मद्रास और पंजाब में जातिवाद और साम्प्रदायिकता के कारन अच्छी सफलता प्राप्त नहीं हुई.

जब सन 1924 में गाँधीजी को जेल से रिहा किया गया था तो उन्होंने स्वराज पार्टी को राजनितिक कार्यक्रम में समर्थन देने की बात कही और स्वराज पार्टी ने भी गाँधीजी को रचनात्मक कार्यो में समर्थन देने की बात कहि. लेकिन सन 1924 में चित्तरंजन दास के आकस्मिक निधन से स्वराज पार्टी को बहुत बड़ा झटक लगा.

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स्वराज पार्टी के पतन के क्या कारन थे

स्वराज पार्टी के पतन के निम्नलिखित कारन थे:

  • सन 1925 में चित्तरंजन दास की मृत्यु के पश्चात् स्वराज दल का संगठन काफ़ी कमजोर पड़ गया था.
  • शुरुआत दौर में स्वराज पार्टी ने असहयोग की निति को अपनाया था. इस पार्टी के लोग सरकार के प्रत्येक कार्य में दखल देते थे. लेकिन बाद में इनको यह अहसास हुआ की असहयोग की निति से सीधा नुकसान जनता को ही हो रहा है. इसलिए उन्होंने अपनी निति को असहयोग से सहयोग में बदली जिससे जनता के विश्वास को धक्का पंहुचा.
  • पार्टी के अन्दर ही लोगो के विचारो में मतभेद था. जहा पंडित मोतीलाल नेहरु असहयोग का नेतृत्व कर थे. वही बम्बई के स्वराज दल के लोग सहयोगवादी विचार धारा का समर्थन कर रहे थे.
  • सन 1926 के विधान परिषद् चुनाव में दल को वह सफलता वापस प्राप्त नहीं हुई. जो दल को सन 1923 के चुनावो में हुई थी. जिससे दल का विश्वास पूरा टूट गया था.
  • लाला लाजपत राज और पंडित मदनमोहन मालवीय का मानना था की पार्टी के अडंग रविये से हिन्दुओ को नुकसान हो रहा है. और मुस्लिमो को फायदा हो रहा है. इसलिए उन्होंने एक अलग हिंदूवादी दल की स्थापना की जिससे स्वराज पार्टी ओर ज्यादा कमजोर हो गई.

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स्वराज पार्टी के महत्वपूर्ण कार्य और उपलब्धिया

स्वराज पार्टी के पतन होने से इस पार्टी के द्वारा किये गए महत्वपूर्ण कार्यो को भुलाया नहीं जा सकता था. स्वराज पार्टी ने विधान परिषद् में भाग लेकर निम्नलिखित महतवपूर्ण कार्य किए थे:

  • इस पार्टी के लोग बजट को हर वर्ष अस्वीकृत कर देते थे. जिससे वायसराय को अपने विशेष अधिकार का उपयोग करके बजट को पारित करना होता था.
  • उनके प्रयासों के फलस्वरुप ही सन 1924 में सरकार ने 1919 के अधिनियम की समीक्षा के लिए मुंडी मैन कमिटी की स्थापना की थी.
  • सन 1925 में मोतीलाल नेहरु ने स्क्रीन कमिटी में सदस्यता ग्रहण की जिसका उद्देश्य सेना का तीव्र गति से भारतीयकरण करना था.
  • सन 1922 और 1928 के बिच में कांग्रेस पार्टी पूर्ण रूप से शांत रही थी इस काल में सरकार की गलत नीतियों का स्वराज पार्टी ने जमकर विरोध किया था.
  • इस पार्टी ने ही उत्तरदायी शासन स्थापित करने के लिए गोलमेज सम्मेलन बोलाने का सुझाव दिया था.

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निष्कर्ष

इस आर्टिकल (बिहार में स्वराज दल का गठन किसने किया | bihar mein swaraj dal ka gathan kisne kiya |  स्वराज पार्टी के अध्यक्ष कौन थे | स्वराज पार्टी क्या है | स्वराज पार्टी के महत्वपूर्ण कार्य और उपलब्धिया) को लिखने का हमारा उद्देश्य आपको स्वराज दल के बारे में विस्तार से जानकारी देना है. इसकी स्थापना 1 जनवरी 1923 को भारतीय स्वंत्रता के दो प्रमुख नेता देशबंधु चित्तरंजन दास और मोतीलाल नेहरु ने की थी. स्वराज शब्द का शाब्दिक अर्थ अपना राज्य या देश होता है. यह दल भारतीयों का शासन और राजनीती में स्वंत्रता के लिए कार्य करता था.

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