संचारी भाव की संख्या कितनी है | sanchari bhav ki sankhya kitni hai

संचारी भाव की संख्या कितनी है | sanchari bhav ki sankhya kitni hai | संचारी भाव के प्रकार | संचारी या व्यभिचारी भाव किसे कहते है – भाव या रस के बिना साहित्य, कविताओ, काव्य की रचना भी करना संभव नहीं है. भाव किसी भी साहित्य और काव्य के लिए महत्वपूर्ण होते है. काव्य, कहानी, साहित्य को पढ़ने वक्त जिस आनंद की अनुभूति होती है. उसे ही भाव या रस कहा जाता है. भाव अनेक प्रकार के होते है. लेकिन इस आर्टिकल में हम संचारी भाव और संचारी भाव के प्रकार के बारे में विस्तार से जानकारी प्राप्त करेगे.

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संचारी भाव किसे कहते है | व्यभिचारी भाव किसे कहते है

स्थायी भाव प्रधान मानसिक प्रक्रिया होती है. इन भावो के साथ कुछ ऐसे भी भाव उत्पन्न होते है. जो स्थायी भाव के साथ मन में संचारित करते है. इन भावो को संचारी भाव कहा जाता है. संचारी भाव को व्यभिचारी भी कहा जाता है.

क्योंकि संचारी भाव किसी एक भाव के साथ लम्बे समय तक नहीं रहते है. संचारी भाव कभी किसी स्थायी भाव के साथ होते है. तो कभी अन्य स्थायी भाव के साथ होते है. इसलिए इनकी इस व्यभिचारी वृत्ति के कारन ही इन्हें व्यभिचारी भी कहा जाता है.

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कोई भी रस संचारी भाव तभी होता है जब वह स्थायी भाव के साथ प्रकट हुआ हो. अगर कोई भाव स्वत्रंत रूप से या प्रधान भाव के अधीन प्रकट हुआ हो तो यह संचारी भाव नहीं होता है. इसे निचे एक उदाहरन से समझते है.

किसी स्त्री के प्रति नायक के प्यार को देखकर नायिका के मन में उत्पन्न ईर्ष्या संचारी भाव है. क्योंकि यह नायक के प्रति नायिका के प्रेम के भाव से उत्पन्न होती है. इसलिए यह संचारी भाव है. वही किसी महान व्यक्ति के तरक्की को देखकर मन में उत्पन्न ईर्ष्या का भाव संचारी भाव नहीं है. क्योंकि यह भाव स्वत्रंत रूप से उत्पन्न हुआ होता है.

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संचारी भाव की संख्या कितनी है | sanchari bhav ki sankhya kitni hai | संचारी भाव के प्रकार

संचारी भाव का आधार हमेशा स्थायी भाव होते है. स्थायी भाव के बिना संचारी भाव का कोई आधार नहीं है. इसलिए संचारी भाव स्थायी भाव के साथ उत्पन्न होते है. और खत्म हो जाते है. संचारी भाव 33 प्रकार के होते है. इसके नाम निम्नलिखित है:

निर्वेद

जब व्यक्ति वियोग, दरिद्रता, अपमान, व्याधि आदि भाव को जानकर उदासीन महसूस करता है. तो इसे निर्वेद भाव कहा जाता है. यह भावना संसार के प्रति उदासीनता प्रकट करती है.

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शंका

किसी भी प्रकार की हानि की संभावना होने की आशंका से शंका का भाव उत्पन्न होता है. इस भाव में मुह का रंग बदलना, कांपना इत्यादि शारीरिक क्रियाए होती है.

गर्व

सुन्दरता, ज्ञान, धन, शक्ति आदि के अभिमान से उत्पन्न भाव को गर्व कहा जाता है. अनादर, उपेक्षा इत्यादि इत्यादि गर्व भाव के अनुभाव है.

चिंता

इष्ट वस्तु की प्राप्ति में विघ्न पड़ने की आशंका से चिंता के भाव उत्पन्न होता है. मलिन, दुःख, सूनापन इत्यादि चिंता भाव के अनुभाव है.

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मोह

दुःख, भय, चिंता, वियोग आदि के कारन चित्त से विक्षिप्त होने को मोह कहा गया है. भ्रम उत्पन्न होना, ज्ञान का नष्ट हो जाना, चेतनाहीन होना इत्यादि मोह के अनुभाव है.

विषाद

उत्साह का भंग होना, इच्छित वस्तुए प्राप्त नहीं होना, असफल होना इत्यादि परिस्थिति में उत्पन्न भाव विषाद भाव कहलाते है.

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दैन्य

दुःख और दंरिता से उत्पन्न हुई मन की अवस्था को दैन्य कहा जाता है. हीनता, मलिनता इत्यादि इसके अनुभाव है.

असूया

दुसरो की तरक्की को देखकर उनको हानि पहुचाने के भाव को असूया कहा जाता है. तिरस्कार, निंदा, कठोर  कथन आदि असूया के अनुभाव है.

मृत्यु

मरने के समान कष्ट को अनुभव करना ही मृत्यु भाव कहा जाता है.

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मद

किसी के मोह के साथ आनंद को प्राप्त करना मद कहा जाता है. आँखों का लाल होना, अनर्गल, प्रलाप करना , मुस्कान मद के अनुभाव है.

आलस्य

श्रम के कारन उत्साह में हीनता से आलस्य भाव की उत्पत्ति होती है. एक ही स्थान में पड़े रहने की भावना आलस्य के अनुभाव है.

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श्रम

अत्यधिक कार्य करने के कारन आई थकान को श्रम कहा जाता है. अंगड़ाई लेना, लम्बी श्वास लेना श्रम

के अनुभाव है.

उन्माद

शोक, भय, क्रोध, काम के कारन चित्त से भ्रमित होने से उत्पन्न भाव ही उन्माद कहा जाता है. हसना, रोना, अपने आप से बात करना इत्यादि उन्माद के अनुभाव है.

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प्रकृति

लज्जा, गोपन, श्रम इत्यादि भावो के कारन किसी बात को छुपाने के भाव को ही अवहित्य कहा जाता है. मुह देखन, बात बदलना, मुह निचे करके देखना इत्यादि इसके अनुभाव है.

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चपलता

ईर्ष्या और द्वेष आदि के कारन उत्पन्न भाव को चपलता कहा जाता है. कठोर शब्द कहना इसके अनुभाव है.

अपस्मार

मानसिक संताप की अधिकता में चित्त होकर उत्पन्न भाव को अपस्मार कहा जाता है. हाथ पैर पटकना, धरती पर गिरना इत्यादि इसके अनुभाव है.

भय

किसी अहित की आकांशा में उत्पन्न भाव ही भय है. कंप, आशंका इत्यादि भय के अनुभाव है.

ग्लानि

मन की खिन्नता का भाव ही ग्लानि है. किसी कार्य में मन नहीं लगना और मन का उचटना ग्लानि के अनुभाव है.

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ब्रीडा

प्रिय के दर्शन से उत्पन्न लज्जा, संकोच, प्रतिज्ञा, पराजय इत्यादि भाव को ब्रीडा कहा जाता है. संकोच, आँखों को चुपाना इत्यादि ब्रीडा के अनुभाव है.

जड़ता

विवेकशून्यता का भाव ही जड़ता है. टकटकी लगा कर देखना और मौन हो जाना जड़ता के अनुभाव है.

हर्ष

किसी इच्छित वस्तु को प्राप्त करने के बाद जो भाव उत्पन्न होता है उसे हर्ष कहा जाता है. गदगद होना, प्रसन्नसा इत्यादि हर्ष के अनुभाव है.

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धृति

ज्ञान और सत्संग के संपर्क से भय और चिंता इत्यादि विकारो को शांत करने वाली बुद्दी धृति कहलाती है. धैर्य, संतोष इत्यादि धृति के अनुभाव है.

मति

शास्त्र और ज्ञान की प्राप्ति के बाद किसी निश्चय पर पहुचना ही मति कहा जाता है. आनंद, धैर्य, संतोष इत्यादि मति के अनुभाव है.

आवेग

किसी आक्स्मिक भय से उत्पन्न भाव को आवेग कहा जाता है. हर्ष, शोक, कंप, स्तम्भ इत्यादि आवेग के अनुभाव है.

उत्सुकता

किसी इच्छित वस्तु की प्राप्ति में विलम्ब नहीं सहन हो पाना ही उत्सुकता होती है. व्याकुलता, आतुरता इत्यादि उत्सुकता के अनुभाव है.

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निद्रा

शारीरिक थकावट, श्रम इत्यादि से उत्पन्न चित्त ही निद्रा कहा जाती है. अंगड़ाई लेना, आखे झपकना इत्यादि निद्रा के अनुभाव है.

स्वप्न

सोती हुई अवस्था में जागते हुए व्यक्ति की तरह आचरण करने को ही स्वप्न कहा जाता है. क्रोध, दुःख, ग्लानि इत्यादि स्वप्न के अनुभाव है.

बोध

ज्ञान प्राप्त करने के बाद और निद्रा के पश्चात् चेतना को प्राप्त करना ही बोध कहा जाता है. शांति, अंगड़ाई इत्यादि बोध के अनुभाव है.

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उग्रता

अपमान और दुव्यवहार इत्यादि के कारन उत्पन्न निर्दयता ही उग्रता है. मार-पिट करना उग्रता के अनुभाव है.

व्याधि

वियोग और योग के द्वारा उत्पन्न मनस्थिति को व्याधि कहा जाता है. व्याकुलता, कंप इत्यादि व्याधि के अनुभाव है.

अमर्ष

किसी के अनुचित व्यवहार से उत्पन्न हुई असहनीयता और असहिष्णुता का भाव ही अमर्ष है. भोहो का कुटिल होना, नेत्रों का लाल होना अमर्ष के अनुभाव है.

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वितर्क

अनिश्चिता और संदेह के कारन मन में उत्पन्न भाव ही वितर्क है.

स्मृति

वस्तुओ और व्यक्तियों की अनुभूति ही स्मृति कहा जाता है. चंचलता, भोहो को चढ़ना इत्यादि स्मृति के अनुभाव है.

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निष्कर्ष

इस आर्टिकल (संचारी भाव की संख्या कितनी है | sanchari bhav ki sankhya kitni hai | संचारी भाव के प्रकार | संचारी या व्यभिचारी भाव किसे कहते है ) को लिखने का हमारा उद्देश्य आपको संचारी भाव और संचारी भाव के प्रकार के बारे में विस्तार से जानकारी देना है. स्थायी भाव प्रधान मानसिक प्रक्रिया होती है. इन भावो के साथ कुछ ऐसे भी भाव उत्पन्न होते है. जो स्थायी भाव के साथ मन में संचारित करते है. इन भावो को संचारी भाव कहा जाता है. संचारी भाव 33 प्रकार के होते है.

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