सरस्वती शिशु मंदिर भोजन मंत्र | सरस्वती शिशु मंदिर प्रार्थना पुस्तक पीडीऍफ़ – भोजन का महत्व मानव जीवन में कितना हैं यह तो आप सभी जानते ही हैं. पृथ्वी पर बसे लगभग सभी लोगो को भोजन की आवश्यकता होती हैं. अन्न उगाने के लिए किसान मेहनत करते हैं. मनुष्य इस अन्न को खरीद ने के लिए रात दिन मजदूरी और काम करता हैं. भोजन को भारतीय सनातन संस्कृति में देवता माना जाता हैं. क्योंकि इसी भोजन से हमारा शरीर चलता हैं हमारे शरीर का निर्माण होता हैं.
भोजन के प्रति हमारे ह्रदय में सम्मान भाव पैदा हो इसलिए भोजन मंत्र बोलना आवश्यक बताया गया हैं. भोजन मंत्र का उच्चारण करने के बाद भोजन करना शुभ माना जाता हैं. हमारे पुराने ग्रंथो में भोजन मंत्र का बहुत महत्व बताया गया हैं. आज कई विद्यालयों में विधार्थी को भोजन मंत्र का महत्व बताया जाता हैं. और विधार्थिओं को मंत्र उच्चारण के बाद ही भोजन करने की अनुमति दी जाती हैं.
दोस्तों आज हम आपको वही मंत्र के बारे में जानकारी देंगे जो भोजन करने के पूर्व छात्रों को विद्यालय में बुलवाया जाता हैं. यह इसलिए करवाया जाता हैं की बचपन से ही बच्चे भोजन का महत्व समझ सके. एवं भोजन तथा अन्न का आदर करना सीखें.
सरस्वती शिशु मंदिर भोजन मंत्र
भोजन के पूर्व निम्नलिखित मंत्र का उच्चारण करवाया जाता हैं.
अन्न ग्रहण करने से पहले
विचार मन मे करना है
किस हेतु से इस शरीर का
रक्षण पोषण करना है
हे परमेश्वर एक प्रार्थना
नित्य तुम्हारे चरणो में
लग जाये तन मन धन मेरा
विश्व धर्म की सेवा में ॥
ब्रहमार्पणं ब्रहमहविर्ब्रहमाग्नौ ब्रहमणा हुतम्।
ब्रहमैव तेन गन्तव्यं ब्रहमकर्मसमाधिना ॥
ॐ सह नाववतु।
सह नौ भुनक्तु।
सह वीर्यं करवावहै।
तेजस्विनावधीतमस्तु।
मा विद्विषावहै ॥
ॐ शान्ति: शान्ति: शान्ति:: ॥
इस मंत्र का अर्थ
यह मंत्र गीता का चतुर्थ अध्याय का 24 वा श्लोक हैं. जिसका अर्थ होता है की जिस हवन में अर्पण अर्थात स्त्रुवा आदि ब्रह्म है. और हवन किये जाने योग्य द्रव्य भी ब्रह्म है. और ब्रह्म रूप कर्ता के द्वारा ब्रह्म रूप अग्नि में आहुति दिया जाना भी ब्रह्म हैं. उस ब्रह्म कर्म में स्थित रहने वाला योगी द्वारा प्राप्त किये जाने वाला योग्य फल भी ब्रह्म है.
“सह नाववतु, सह नौ भुनक्तु, सह वीर्यम करवावहै.
तेजस्विनावधीतमस्तु मा विद्रिषावहै ॐ शान्ति: शान्ति: शान्ति:”
इस भाग का अर्थ है:
सह नाववतु – हमारी साथ साथ रक्षा करे.
सह नौ भुनक्तु – हमारा साथ साथ पालन करे.
सह वीर्यम करवावहै – हम दोनों को साथ साथ पराक्रमी बनाए.
तेजस्विनावधीतमस्तु – हम दोनों का जो पढ़ा हुआ शास्त्र है वो तेजस्वी हो.
मा विद्रिषावहै – हम गुरु और शिष्य एक दुसरे से द्रेष ना करे.
ॐ शान्ति: शान्ति: शान्ति: – ओम शांति शांति शांति.
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भोजन मंत्र का महत्व
एक बात जो आप नहीं जानते होगे आप जिस माहौल में भोजन करते हैं. आपके शरीर में उसी माहौल से संबंधित रसायन का निर्माण होता है. इस बात को विज्ञान द्वारा प्रमाणित किया गया है.
आप जब भी भोजन करते हो उस समय अगर आप क्रोधित हो गए तो आपका शरीर हानिकारक रसायन का निर्माण करता हैं. और अगर आप शांत चित से भोजन करते हो तो आपके शरीर में लाभकारक रसायन का निर्माण होता हैं.
इसी कारण से भोजन करने के पूर्व भोजन मंत्र बताया गया हैं. मंत्र उच्चारण से आपका मन शांत होता हैं. शांत चित से भोजन करने से आप भोजन के प्रति भर जाते हो और अच्छे से एकाग्र होकर भोजन का आनंद ले पाते हो.
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आनंद से भोजन लेने के कारण मन शांत हो जाता हैं. और ख़ुशी से भोजन ग्रहण करने से आपके द्वारा ग्रहण किया हुआ भोजन आपके शरीर में जाकर लाभकारक रसायन पैदा करते है. जिस से आपके शरीर को बल एवं शक्ति मिलती हैं.
दोस्तों आप समझ ही गए होगे की भोजन करने के पूर्व जरुर भोजन मंत्र का उच्चारण करना चाहिए. और अपने बच्चो को भी बचपन से ही यह मंत्र का उच्चारण करवाना सिखाना चाहिए और इस मंत्र का महत्व उन्हें बताना चाहिए.
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निष्कर्ष
दोस्तों आज हमने इस आर्टिकल (सरस्वती शिशु मंदिर भोजन मंत्र | सरस्वती शिशु मंदिर प्रार्थना पुस्तक पीडीऍफ़ – ) के द्वारा भोजन करने के पूर्व जो मंत्र बोला जाता हैं उस बारे में विस्तार से बताया तथा मंत्र का अर्थ भी आपको समझाया एवं भोजन मंत्र का महत्व क्या है इस बारे में भी आपको जानकारी दी आशा करते है आपको यह आर्टिकल अच्छा लगा होगा.
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