सूरदास के गुरु कौन थे | surdas ke guru kaun the | सूरदास जी का साहित्य व्यक्तित्व

सूरदास के गुरु कौन थे | surdas ke guru kaun the | सूरदास जी का साहित्य व्यक्तित्व – कहा जाता है की गुरु के बिना ज्ञान अधुरा है. हमारे हिन्दू धर्म में गुरु का स्थान भगवान और माता पिता के बाद सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है. अगर आपको भक्ति के मार्ग पर आगे बढ़ना है तो आपको गुरु ही रास्ता बता सकते है. प्रत्येक भक्त को कोई ना कोई गुरु अवश्य होता है. इस आर्टिकल में हम महाकवि सूरदास जी के गुरु की जानकारी प्राप्त करेगे.

इतिहास में मीरा, तुलसीदास, रविदास के गुरु की भी व्याख्या मिलती है. लेकिन सूरदास के गुरु के बारे में ज्ञान संक्षिप्त है. इसलिए हम यहा सूरदास जी के जीवनी के माध्यम से यह भी बताएगे की सूरदास को अपने गुरु की प्राप्ति कैसे हुई थी.

surdas-ke-guru-kaun-the-kaun-the-sahity-vyaktitv-3

सूरदास के गुरु कौन थे | surdas ke guru kaun the

सूरदास को कृष्ण भक्ति और भागवत गीता के गुणगान की दीक्षा गऊघाट में श्री वल्लभाचार्य से प्राप्त हुई थी. इसलिए श्री वल्लभाचार्य ही सूरदास के गुरु माने जाते है.

बीजक में किसका उपदेश संग्रहित है | bijak mein kiska updesh sangrahit hai

सूरदास जी कौन थे

सूरदास जी कृष्ण भक्ति की धारा को आमजन तक पहुचाने वाले भक्त महाकवि थे. सूरदास जी की भाषा ब्रज थी. वह हिंदी साहित्य के भक्ति काल के सगुण भक्ति शाखा के कृष्ण भक्ति उपशाखा के सर्वोच्च कवि रत्न थे. उनका जन्म वर्ष 1478 में वर्तमान उत्तर प्रदेश राज्य में रुनकता नामक नगर में हुआ था.

वही कुछ विद्वानों का यह भी मत है की सूरदास का जन्म दिल्ली के सीही नामक गाँव में वर्ष 1479 में हुआ था. सूरदास जी जन्म से ही अंधे थे. लेकिन लोगो का मानना है की जिस प्रकार से सूरदास जी ने अपने काव्यो में कृष्ण रूप की सूक्ष्म व्याख्या है. वह कोई बिना दृष्टी से नहीं कर सकता था. इसलिए सूरदास को ईश्वर की कृप्या से दिव्य दृष्टी प्राप्त थी जिससे वह ईश्वर को देख सकते थे.

रोला छंद का सरल उदाहरण – रोला छंद की परिभाषा – सम्पूर्ण जानकारी

सूरदास जी ने अपनी रचना “साहित्य लहरी” में खुद को चंदबरदायी का वंशज बताया है. तथा इस रचना में सूरदास का वास्तविक नाम सूरजचंद बताया गया है. प्राचीन साहित्यों में भक्त महाकवि सूरदास जी और तत्कालीन मुग़ल बादशाह अकबर के भेंट की भी व्याख्या प्राप्त होती है.

सूरदास बचपन से ही गानविधा में माहिर थे. उन्होंने मात्र 6 वर्ष की आयु में घर त्याग कर दिया था. तथा नदी के किनारे बैठ कर गानविधा और प्रभु कीर्तन करते थे. बहुत ही कम समय में उत्कर्ष गानविधा के कारण उनकी ख्याति आस-पास के लोगो में पहुच चुकी थी. इस प्रकार लोग उन्हें “स्वामी” नाम से बुलाते थे.

surdas-ke-guru-kaun-the-kaun-the-sahity-vyaktitv-1

एक दिन सूरदास जी ने स्थान बदलने का मन बना लिया. और आगरा-मधुरा नगर के बिच में यमुना नदी के तट पर गऊघाट में रहने लगे. जहा पर उनकी मुलाकात श्री वल्लभाचार्य से हुई. श्री वल्लभाचार्य ने सूरदास जी को कृष्ण कीर्तन करने और भागवत गीता का गुणगान करके भक्ति की गंगा बहाने की बात कहि.

संचारी भाव की संख्या कितनी है | sanchari bhav ki sankhya kitni hai

श्री वल्लभाचार्य ने दीक्षा लेकर सूरदास जी भागवत गीता और कृष्ण भक्ति में लग गए. उसके बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़ कर नहीं देखा. इतिहास में भी सूरदास जी को उनकी कृष्ण भक्ति और कृष्ण मोह के लिए जाना जाता है.

सूरदास जी ने भक्ति को शृंगार से जोड़ दिया था. उन्होंने कृष्ण भगवान के बालरूप का सुन्दर वर्णन किया. सूरदास जी ने अपनी रचनाओ में मन के भावो को अत्यधिक रोचक तरीके से व्याख्या की. सूरदास जी ने कृष्ण के प्रति गोपियों के मोह का अपने साहित्यों में सुन्दर वर्णन किया.

दास कैपिटल की रचना किसने की थी | दास कैपिटल का प्रकाशन किस वर्ष हुआ

हमारे द्वारा आपके ज्ञान को बढ़ाने के लिए निम्न पुस्तके प्रस्तुत है, पुस्तको की तस्वीर पर क्लिक कर के पुस्तके डिस्काउंट के साथ खरीदे:

                 

सूरदास जी का साहित्य व्यक्तित्व

सूरदास जी के काव्यो में कला और भाव दोनों उत्कर्ष रूप में प्राप्त होते है. वह शृंगार रस के प्रमुख कविराज थे. हिंदी साहित्य जगत में सूरदास जी को कृष्ण भक्ति उपशाखा में सबसे सर्वोच्च स्थान प्राप्त है. उनके जैसे कृष्ण भक्त आज तक साहित्य जगत में कोई नहीं है.

अपने काव्यो और रचनाओ में सूरदास जी ने भावो को उत्कर्ष स्थान दिया है. उनके काव्यो में जो भाव और मन स्थिति का वर्णन प्राप्त होता है. शायद ही पुरे संसार में किसी अन्य काव्यो में प्राप्त होता होगा. उनकी सबसे प्रसिद्द कृति सूरसागर में उन्होंने 1 लाख पदों की रचना की थी.

प्रकृति का जादू किसे कहा गया है | prakriti ka jadu kise kaha gaya hai Class 6

निष्कर्ष

इस आर्टिकल (सूरदास के गुरु कौन थे | surdas ke guru kaun the | सूरदास जी का साहित्य व्यक्तित्व) को लिखने का हमारे उद्देश्य आपको सूरदास जी के गुरु के बारे में जानकरी देना है. सूरदास जी के गुरु का नाम श्री वल्लभाचार्य है. सूरदास को कृष्ण भक्ति और भागवत गीता के गुणगान की दीक्षा गऊघाट में श्री वल्लभाचार्य से ही प्राप्त हुई थी. उनकी सबसे प्रसिद्द कृति सूरसागर में उन्होंने 1 लाख पदों की रचना की है.

कोलकाता में सर्वोच्च न्यायलय की स्थापना कब हुई थी | प्रथम मुख्य न्यायाधीश कौन थे

कृषि किसे कहते है | krishi kise kahate hain | कृषि के प्रकार का वर्णन करें

मानव पूंजी निर्माण में शिक्षा की क्या भूमिका है | मानव पूंजी क्या है

आपको यह आर्टिकल कैसा लगा हैं. यह हमे तभी पता चलेगा जब आप हमे निचे कमेंट करके बताएगे. यह आर्टिकल विभिन्न प्रतियोगिता परीक्षाओ की दृष्टी से भी महत्वपूर्ण हैं. इसलिए इस आर्टिकल को उन लोगो और दोस्तों तक पहुचाए जो प्रतियोगिता परीक्षा की तैयारी कर रहे हैं. क्योंकि ज्ञान बाटने से हमेशा बढ़ता हैं. धन्यवाद.

Leave a Comment

x